4. जैव-मात्रा
वे ईंधन जो हमें पादप एवं जंतु उत्पाद से प्राप्त होते है उन्हें जैव-मात्रा कहते हैं | जैसे - लकड़ी, गोबर, सूखे पत्ते और तने आदि |
- ये ज्वाला के साथ जलते है |
- इन्हें जलाने पर अत्यधिक धुँआ निकालता है |
- ये ईंधन अधिक ऊष्मा उत्पन्न नहीं करते है |
- ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है |
- जैव-मात्र ऊर्जा का नवीनीकरणीय स्रोत है |
चारकोल (काष्ठ कोयला) : जब लकड़ी को वायु कि सीमित आपूर्ति में जलाते हैं to उसमें उपस्थित जल एवं वाष्पशील पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा इसके अवशेष के रूप में चारकोल रह जाता है |
चारकोल के गुण:
(i) चारकोल बिना ज्वाला के जलता है |
(ii) इससे अपेक्षाकृत कम धुँआ निकलता है |
(iii) इसकी ऊष्मा उत्पन्न करने की दक्षता भी अधिक होती है |
जैव गैस या गोबर गैस :
जैव गैस का प्रचलित नाम गोबर गैस है क्योंकि इस गैस को बनाने में उपयोग होने वाला मुख्य पदार्थ गोबर है |
इसकी विशेषता निम्न है :
- जैव गैस एक संयंत्र में उत्पन्न किया जाता है |
- इस संयंत्र को जैव गैस संयंत्र या गोबर गैस संयंत्र कहते है |
- इस गैस का उपयोग ईंधन व प्रकाश स्रोत के रूप में गाँव-देहात में किया जाता है |
- यह एक उत्तम ईंधन है क्योंकि इसमें 75 प्रतिशत मेथेन गैस होती है |
- इसकी तापन क्षमता अधिक होती है |
- यह धुँआ उत्पन्न किये बिना जलती है |
- इसका उपयोग प्रकाश स्रोत के रूप में भी किया जाता है |
- तकनीक के प्रयोग से यह एक सस्ता ईंधन बन गया है |
- इससे उत्पन्न शेष बची स्लरी का उपयोग एक उत्तम खाद के रूप में किया जाता है क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन एवं फोस्फोरस होता है |
बायो गैस का निर्माण : गोबर, फसलों के काटने के पश्चात् बचे अपशिष्ट सब्जियों के अपशिष्ट जैसे विविध पादप तथा वाहित मल जब ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में अपघटित होते है तो बायो-गैस /जैव गैस का निर्माण होता है |
कर्दम (Slurry): जैव गैस बनाने के लिए मिश्रण टंकी में गोबर तथा जल का एक गाढ़ा घोल डाला जाता है, जिसे कर्दम या स्लरी (Slurry) कहते है |
संपाचित्र (digester) : संपाचित्र चारो ओर से बंद एक कक्ष होता है जिसमें ऑक्सीजन नहीं होता है | यह बायो-गैस संयंत्र का सबसे बड़ा एवं प्रमुख भाग होता हैं | इसी भाग में अवायवीय सूक्ष्म जीव गोबर कि स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन कर देते है |
बायो गैस निर्माण प्रक्रिया:
मिश्रण टंकी में कर्दम (स्लरी) का डाला जाना
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अवायवीय सूक्ष्म जीवों द्वारा गोबर कि स्लरी के जटिल यौगिकों का अपघटन करना
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अपघटन के पश्चात् मीथेन, CO2, हाइड्रोजन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड गैसों का उत्पन्न होना
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बनी हुई गैस का गैस टंकी में संचित होना
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प्रक्रम द्वारा शेष बची स्लरी का निर्गम टंकी में इक्कठा होना
बायो-गैस संयंत्र में बनने वाली गैसें :
(i) मीथेन (ii) CO2 (iii) हाइड्रोजन (iv) हाइड्रोजन सल्फाइड
जैव-गैस निर्माण से निम्न उदेश्य पूर्ति होती है:
(i) इसके निर्माण से ऊर्जा का सुविधाजनक दक्ष स्रोत मिलता है |
(ii) इसके निर्माण से उत्तम खाद मिलती है |
(iii) इसके निर्माण से अपशिष्ट पदार्थों के निपटारे का सुरक्षित उपाय भी मिल जाता है |
शेष बची स्लरी का उपयोग:
(i) इस स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्र में होता है इसलिए यह एक उत्तम खाद के रूप में काम आता है |
5. पवन ऊर्जा
आजकल पवन ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में किया जा रहा है |
पवन: गतिशील वायु को पवन कहते है | इसलिए इनमें गतिज ऊर्जा होती है और इनमें कार्य करने कि क्षमता होती हैं |
पवन की उत्पत्ति : सूर्य के विकिरणों द्वारा भूखंडों तथा जलाशयों के असमान तप्त होने के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है तथा पवनों का प्रवाह होता है |
पवन-चक्की : पवन-चक्की एक संयंत्र है जिससे पवन के गतिज ऊर्जा का उपयोग कर विद्युत ऊर्जा बनाई जाती है |
पवन-चक्की की संरचना : पवन-चक्की किसी ऐसे विशाल विद्युत पंखे के समान होती है जिसे किसी दृढ़ आधार पर कुछ ऊँचाई पर खड़ा कर दिया जाता है |
पवन-चक्की (Wind mill)
पवन-ऊर्जा फार्म : किसी विशाल क्षेत्र में बहुत-सी पवन चक्कियाँ लगाई जाती हैं, इस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फार्म कहते हैं |
पवन चक्की द्वारा व्यापारिक स्तर पर विद्युत निर्माण :
व्यापारिक स्तर पर विद्युत प्राप्त करने के लिए किसी पवन ऊर्जा फार्म की सभी पवन-चक्कियों को परस्पर (एक दुसरे से ) युग्मित कर लिया जाता है जिसके फलस्वरूप प्राप्त नेट ऊर्जा सभी पवन-चक्कियों द्वारा उत्पन्न विद्युत उर्जाओं के योग के बराबर होती है |
- डेनमार्क पवन-ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी है इसलिए इसे पवनों का देश कहते है | यहाँ देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक विद्युत की पूर्ति पवन-चक्कियों के विशाल नेटवर्क द्वारा विद्युत उत्पन्न की जाती है |
पवन -ऊर्जा कि विशेषताएँ :
(i) पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का एक दक्ष एवं पर्यावरणीय-हितैषी स्रोत है |
(ii) इसके द्वारा विद्युत उत्पादन के लिए बार-बार धन खर्च करने कि आवश्यकता नहीं है |
पवन ऊर्जा के उपयोग की सीमाएँ :
(i) पवन ऊर्जा फार्म केवल उन्ही क्षेत्रों में स्थापित किये जाते है जहाँ वर्ष के अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती हों |
(ii) टरबाइन की आवश्यक चाल को बनाए रखने के लिए पवन की चाल 15 km/h से अधिक होनी चाहिए |
(iii) पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए एक विशाल भूखंड कि आवश्यकता होती है |
(iv) 1 MW (मेगावाट) के जनित्र के लिए पवन फार्म की भूमि लगभग 2 हेक्टेयर होनी चाहिए |
(v) पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए आरंभिक लागत अत्यधिक है |
(vi) उनके लिए उच्च स्तर के रखरखाव कि आवश्यकता होती है |