मुख्य बिन्दू :-
- प्राचीन भारतीय समाज में न्याय धर्म के साथ जुड़ा था और धर्म या न्यायोचित सामाजिक व्यवस्था कायम रखना राजा का प्राथमिक कर्त्तव्य माना जाता था।
- समाज में सामाजिक न्याय पाने के लिए सरकारों को यह सुनिश्चित करना होता है कि कानून और नीतियाँ सभी व्यक्तियों पर निष्पक्ष रूप से लागू हों।
- हमारे देश में सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए संविधान ने छुआछूत की प्रथा का उन्मूलन किया और यह सुनिश्चित किया कि ‘निचली’ कही जाने वाली जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रवेश, नौकरी और पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतों से न रोका जा सके ।
- रॉल्स के अनुसार नैतिकता नहीं बल्कि विवेकशील चिंतन हमें समाज में लाभ और भार के वितरण के मामले में निष्पक्ष होकर विचार करने की ओर प्रेरित करता है।
- डॉ.भीम राव अंबेदकर के अनुसार, न्यायपूर्ण समाज वह है, जिसमें परस्पर सम्मान की बढ़ती हुई भावना और अपमान की घटती हुई भावना मिलकर एक करुणा से भरे समाज का निर्माण करें।
- जे.एस. मिल के अनुसार ,‘न्याय में ऐसा कुछ अंतर्निहित है जिसे करना न सिर्फ सही है और न करना सिर्फ गलत बल्कि जिस पर बतौर अपने नैतिक अधिकार कोई व्यक्ति विशेष हमसे दावा जता सकता है।’
- अज्ञानता के आवरण’ वाली स्थिति की विशेषता यह है कि उसमें लोगों से सामान्य रूप से विवेकशील मनुष्य बने रहने की उम्मीद बंधती है।
- रॉल्स ने इसे ‘अज्ञानता के आवरण’ में सोचना कहा है। वे आशा करते हैं कि समाज में अपने संभावित स्थान और हैसियत के बारे में पूर्ण अज्ञानता की हालत में हर आदमी, आमतौर पर जैसे सब करते हैं, अपने खुद के हितों को ध्यान में रखकर फैसला करेगा।
- पारिश्रमिक या कर्त्तव्यों का वितरण करते समय लोगों की विशेष ज़रूरतों का ख्याल रखने का सिद्धांत है। इसे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने का तरीका माना जा सकता है।
- समान अधिकारों के अलावा समकक्षों के साथ समान बरताव के सिद्धांत के लिए ज़रूरी है, कि लोगों के साथ वर्ग, जाति, नस्ल या लिंग के आधर पर भेदभाव न किया जाए। उन्हें उनके काम और कार्यकलापों के आधर पर जाँचा जाना चाहिए, इस आधर पर नहीं कि वे किस समुदाय के सदस्य हैं।