अभ्यास - प्रश्न:
प्रश्न: निम्नलिखित लोगों ने किन सामाजिक विचारों का समर्थन और प्रसार किया:
राममोहन रॉय
दयानंद
वीरेशलिंगम पंतुलु
ज्योतिराव फुले
पंडिता रमाबाई
पेरियार
मुमताज़ अली
ईश्वरचंद्र विघासहर
उत्तर:
राममोहन रॉय - ब्रह्रा समाज की स्थापना, सटी प्रथा का विरोध|
दयानंद - आर्य समाज को स्थापना, विधवा विवाह का समर्थन|
वीरेशलिंगम पंतुलु - विश्व पुनर्विवाह|
ज्योतिराव फुले - सत्यशोधक समाज संगठन, जाती आधारित समाज की आलोचना|
पंडिता रमाबाई - महिला अधिकार, विधवा गृह की स्थापना (पूना में)|
पेरियार - हिंदू धर्मग्रंथों के आलोचक, स्वाभिमान आन्दोलन|
मुमताज़ अली - मुसलिम लड़कियों की शिक्षा|
ईश्वरचंद्र विघासहर - महिला शिक्षा|
प्रश्न: निम्नलिखित में से सही या गलत बताएँ:
(क) जब अंग्रेजों ने बंगाल पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने विवाह, गोद लेने, संपति उत्तराधिकार आदि के बारे में ने कानून बना दिए|
(ख) समाज सुधारकों को सामाजिक तौर - तरीकों के लिए प्राचीन ग्रन्थों से दूर रहना पड़ता था|
(ग) सुधारकों को देश के सभी लोगों का पूरा समर्थन मिलाता था|
(घ) बाल विवाह निषेध अधिनियम 1829 में पारित किया गया था|
उत्तर:
(क) सही|
(ख) गलत|
(ग) गलत|
(घ) सही|
प्रश्न: प्राचीन ग्रंथों के ज्ञान से सुधारकों को नए कानून बनवाने में किस तरह मदद मिली ?
उत्तर:
सर्वप्रथम राजा राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इस तरह के प्रयोग किये बाद में अन्य सुधारकों ने भी प्राचीन धर्म ग्रंथों का सहारा लिया | जब भी वे किसी हानिकारक प्रथा को वे चुनौती देना चाहते थे तो अक्सर प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के श्लोकों से ऐसे श्लोक या वाक्य खोजने का प्रयास करते थे जो उनकी सोंच का समर्थन करते हो | इसके बाद वे दलील देते थे कि संबंधित वर्त्तमान रीति-रिवाज प्रारंभिक परंपरा के खिलाफ है |
प्रश्नह: लड़कियों को स्कूल ना भेजने के पीछे लोगों के पास कौन-कौन से कारण थे ?
उत्तर:
(i) लोगों को भय था कि स्कूल वाले लड़कियों को घर से निकाल ले जायेंगे और उन्हें घरेलु कामकाज नहीं करने देंगे |
(ii) स्कूल जाने के लिए लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से गुजरना पड़ता था | उनकी मान्यता थी कि लड़कियों को सार्वजनिक स्थानों से दूर रहना चाहिए |
(iii) बहुत सारे लोगों को लगता था कि इससे लड़कियाँ बिगड़ जाएँगी |
प्रश्न: ईसाई प्रचारकों की बहुत सारे लोग क्यों आलोचना करते थे ? क्या कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया होगा ? यदि हाँ तो किस कारण ?
उत्तर:देश के कई भागों में लोगों ने ईसाई प्रचारकों पर हमला किया, क्योंकि उन्हें डर था कि ये प्रचारक जनजातीय समूहों तथा निम्न जाति के लोगों का धर्म परिवर्तित कर देंगे |
हाँ, कुछ लोगों ने ईसाई प्रचारकों का समर्थन भी किया होगा जिसका निम्न कारण थे |
(i) ये प्रचारक जनजातीय लोगों तथा निम्न जाति के लोगों के लिए स्कूलों की स्थापना कर रहे थे|
(ii) इन लोगों के बच्चों के पास इससे कुछ ज्ञान एवं निपुणतायें आ रही थी | जिनके सहारे वे बदलती दुनिया में अपने लिए रास्ता बना सकते थे |
प्रश्न: अंग्रेजों के काल में ऐसे लोगों के लिए कौन से नए अवसर पैदा हुए जो "निम्न" मानी जाने वाली जातियों से संबंधित थे ?
उत्तर:
(i) शहरों में नौकरी के नए-नए अवसर सामने आ रहे थे | नए स्थापित कारखानों तथा निगमों में नौकरियाँ मिल रही थी |
(ii) मजदूरों, कुलियों, खुदाई करने वालों, ढोने वालों, ईंट बनाने वालों, नाली की सफाई करने वालों, जमादारों, रिक्शा खींचने वालों की दिनों-दिन माँग बढ़ती जा रही थी |
(iii) असम, मारीशस तथा इंडोनेशिया के बागानों में भी नौकरी के अवसर बन रहे थे |
(iv) ईसाई प्रचारकों ने जनजातीय तथा निम्न जाति के बच्चों के लिए स्कूल की स्थापना की |
प्रश्न: ज्योतिराव और अन्य सुधारकों ने समाज असमानताओं की आलोचना को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर: आलोचनाओं को उचित बताना-
(i) ज्योतिराव फुले ने ब्राह्रणों की इस बात को गलत ठहराया कि आर्य होने के कारण वे अन्य लोगों से श्रेष्ठ हैं| फुले का तर्क था कि आर्य उपमहाद्वीप के बाहर से आए थे उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को हरा कर गुलाम बना लिया तथा पराजित जनता को निम्न जाती वाला मनाने लगे|
(ii) पेरियार ने हिंदू वेड पुराणों की आलोचना की उनका मानना था कि ब्राह्रणों ने निचली जातियों पर सटी तथा महिलाओं पर पुरूषों का प्रभुत्त्व स्थापित करने के लिए इन पुस्तकों का सहारा लिया हैं|
(iii) हरिदास ठाकुर ने भी जाती व्यवस्था शि ठहराने वाले ब्राह्र्णवादी ग्रन्थों पर सवाल उठाया|
(iv) अम्बेडकर ने भी मन्दिर प्रवेश आदोंलन के द्वारा समकालीन समाज में उच्च जातीय संरचना पर सवाल उठाए| वह इस आन्दोलन के द्वारा पूरे देश को दिखाना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत हैं|
प्रश्न: फुले ने अपने पुस्तक गुलामगिरी को गुलामो की आजादी के लिए चल रहे अमेरिका आदोलंन को समर्पित क्यों किया?
उत्तर: 1873 में फुले ने गुलामगिरी नामक एक किताब लिखि गुलामगिरी का अर्थ होता है गुलामी | इस घटना के करीब 10 वर्ष पहले अमेरिकी गृहयुद्ध हुआ था जिसमें अंतत: अमेरिका में गुलामी प्रथा का अंत हुआ | यही कारण है कि फुले ने अपनी पुस्तक 'गुलामगिरी' को अमेरिका में गुलामी प्रथा के विरुद्ध आन्दोलन करने वालों को समर्पित किया |
प्रश्न: मंदिर प्रवेश आन्दोलन के जरिये अंबेडकर क्या हासिल करना चाहते थे ?
उत्तर:
(i) 1927 से 1935 के बीच अम्बेडकर ने मदिरों में प्रवेश के लिए ऐसे तीन आन्दोलन चलाये, वे पूरे देश को दिखना चाहते थे कि समाज में जातीय पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत है | वे अपने महार जाति के लोगों को मंदिर में प्रवेश का हक दिलाना चाहते थे | समाजिक भेदभाव समाप्त करना उनका उद्देश्य था |
(ii) समकालीन समाज में उच्च जातीय सत्ता संरचना के कारण निम्न जातियों के साथ असमानता, बुरा व्यवहार तथा भेदभाव हो रहा था|
(iii) जिसके माध्यम से वह देश को दिखाना चाहते थे कि समाज पूर्वाग्रहों की जकड कितनी मजबूत हैं लेकिन लगातार विरोध करने पर इसकों कमजोर किया जा सकता हैं|
प्रश्न: ज्योतिराव फुले और रामास्वामी नायकर राष्ट्रीय आन्दोलन की आलोचना क्यों करते ठगे? क्या उनकी आलोचना से राष्ट्रीय सघर्ष में किसी तरह की मदद मिली?
उत्तर: राष्ट्रीय संघर्ष में मदद:
(i) फुले ने जाती व्यवस्था की अपनी आन्दोलन को सभी प्रकार की गैर बराबरी से जोड़ दिया था, वह उच्च जाती महिलाओं की दुर्दशा, मजदूरों की मुसीबतों और निम्न जातियों के अपमानपूर्ण हालत के बारे में गहरे तौर पर चिंतित थे|
(ii) पेरियार की दलीलों और आंदोलन से उच्च जातीय नेताओं के बीच कुछ आत्ममंथन और आत्मालोचना की प्रक्रिया शुरू हुई|
(iii) इनकी आलोचना से मसाज में समानता का भाव आया| जातीय बंधन ढीले पड़े, छुआछूत की भावना काम हुई, जिससे राष्ट्रीय आदोलन में एकता का भाव पैदा हुआ|