अभ्यास - प्रश्न:
प्रश्न: दो ऐसे मौलिक अधिकार बताइए जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्वक और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए हम इस्तेमाल कर सकते हैं | इस सवाल का जवाब देने के लिए पृष्ठ 14 (पाठ्यपुस्तक) पर दिए गए मौलिक अधिकारों को दोबारा पढ़िए |
उत्तर: दो ऐसे मौलिक अधिकार जिनका दलित समुदाय प्रतिष्ठापूर्ण और समतापरक व्यवहार पर जोर देने के लिए कर सकते हैं -
(i) समानता का अधिकार - कानून की नजर में सब लोग समान हैं | इसका मतलब है कि सबी लोगों को देश का कानून बराबर सुरक्षा प्रदान करेगा | इस अधिकार में यह भी कहा गया है की धर्म, जाति या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार - इस अधिकार के अंतर्गत अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता, देश में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता तथा कोई भी कारोबार करने की स्वतंत्रता शामिल है |
प्रश्न: रत्नम की कहानी 1989 के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों को दोबारा पढ़िए | अब एक कारण बताइए कि रत्नम ने इसी कानून के तहत शिकायत क्यों दर्ज कराई ?
उत्तर: अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम 1989 के प्रावधानों के अनुसार ऊँचे वर्गों द्वारा दलित या आदिवासी समूह के साथ दुर्व्यवहार, शारीरिक रूप से खौफनाक और नैतिक रूप से निंदनीय अपमान गैर-क़ानूनी व दंडनीय अपराध है |
रत्नम की कहानी में उसे एक अनैतिक रस्म निभाने को कहा जाता है क्योंकि वह दलित है | जब वह इस रस्म को निभाने से इंकार कर देता है तो ऊँची जाति के लोगों से यहसहन नहीं होता | ऊँची जाती वालो ने रत्नम और उसके परिवार का उनके अपने समुदाय (दलित वर्ग) से बहिष्कृत कर दिया | एक रत कुछ लोगों ने उसकी झोपडी में आग लगा दी | अंततः रत्नम ने अपने गाँव में ऊँची जातियों द्वारा किए जा रहें भेदभाव और हिंसा का विरोध करने के लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई और कानून का सहारा लिया |
प्रश्न: सी.के.जानू और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं को ऐसा क्यों लगता है कि आदिवासी भी अपने परंपरागत संसाधनों के छीने जाने के खिलाफ 1989 के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते है ? इस कानून के प्रावधानों में ऐसा क्या खास है जो उनकी मान्यता को पुष्ट करता है ?
उत्तर: 1989 के इस कानून में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति के नाम पर आवंटित की गई या उसके स्वामित्व वाली जमीन पर कर्जा करता है या खेती करता है या उसे अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लेता है तो उसे सजा दी जायगी |
आदिवासी कार्यकर्ता सी.के. जानू का भी यह कहना है जो आदिवासी पहले ही बेदखल हो चुके हैं और जो अब वापस नही लौट सकते उन्हें भी मुआवजा दिया जाना चाहिए | इसका मतलब यह है की सरकार ऐसी योजनाएं बनाए जिसके सहारे वे नए स्थानों में रह सकें और काम कर सकें |
अन्य आदिवासी कार्यकर्ता अपनी परंपरागत जमींन पर अपने कब्जे के बहाली के लिए 1989 के अधिनियम का सहारा लेते हैं | कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन लोगों ने आदिवासियों की जमींन पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया है उन्हें इन कानून के तहत सजा दी जनि चाहिए | उनका कहना है कि संवैधानिक रूप से आदिवासियों की जमींन को किसी गैर आदिवासी व्यक्ति को नही बेचा जा सकता | जहां ऐसा हुआ है, वहां संविधान की गरिमा बनाए रखने के लिए उन्हें उनकी जमींन वापस मिलनी चाहिए|