किसान, ज़मींदार और राज्य
प्रश्न – मुगलों के अधीन भारत के विदेश व्यापार का वर्णन कीजिये |
उत्तर – मुग़लकाल के भारत के स्थलीय तथा समुद्र पार दोनों प्रकार के व्यापार में अत्यधिक विस्तार हुआ | भारत से जाने वाली वस्तुओं के भुगतान के रूप में एशिया में भरी मात्र में चांदी आई | इस चाँदी का बड़ा भाग भारत में पहुंचा | यह भारत के लिए अच्छी बात थी क्योंकि यहाँ चाँदी के प्राकृतिक भाग नहीं थे | अतः 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच भारत में धातु मुद्रा विशेषकर चाँदी के रुपयों की उपलब्धता बनी रही |
प्रश्न – वाणिज्यक खेती के प्रसार ने जंगलवासियों के जीवन को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर – वाणिज्यक खेती का प्रसार एक ऐसा बाहरी कारक था जो जंगलवासियों के जीवन को प्रभावित करता था | शहद, मधुमोम और लाख आदि जंगली उत्पादों की बहुत मांग थी लाख जैसे कुछ वस्तुएं तो 17वीं शताब्दी से भारत में समुद्र पार होने वाले निर्यात की मुख्य वस्तुएं थी | हाथी भी पकड़े और बेचे जाते थे | व्यापर में वस्तुओं की अदला –बदली भी होती थी | पंजाब के गाँव और शहरों के बीच होने वाले व्यापार में भी हिस्सा लेते थे |
प्रश्न – मुग़ल काल में जमींदारों और किसानों के बीच रिश्तों की क्या मुख्य विशेषता थी ? कौन -से दो पहलू इनकी पुष्टि करते है ?
उत्तर – इनमे कोई संदेह नहीं कि जमींदार एक शोषक वर्ग था | लेकिन किसानों से उनके रिश्ते पारस्परिकता तथा संरक्षण पर आधारित थे | इसके दो पहलु इस बात की पुष्टि करते है –
1. एक तो यह है कि भक्ति संतों ने जातिगत तथा अन्य अत्याचारों की खुलकर निंदा की | परन्तु उन्होंने जमींदारों को किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दिखाया | प्रायः राज्य का राजस्व अधिकारी ही उनके क्रोध का निशाना बना |
2. दूसरे 17वीं शताब्दी में बड़ी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमे जमींदारों को राज्य के विरुद्ध किसानों का समर्थन मिला |
प्रश्न – ग्राम पंचायत की संरचना स्पष्ट कीजिये | यह अपने उपलब्ध कोषों का उपयोग कैसे करती थी ?
उत्तर – संरचना – गाँव की पंचायत गांवों के बुजर्गों की सभा होतो थी | प्रायः वे गांवों के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी संपति होती थी | जिन गांवों में विभिन्न जाति के लोग रहते थे, वहां पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी | तह एक ऐसा अल्पतंत्र था जिसमें गाँव के अलग -अलग सम्प्रदायों और जातियों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता था | पंचायत का निर्णय गांवों में सबको मानना पड़ता था |
उपलब्ध कोष का उपयोग – पंचायत का खर्चा गाँव के एक ऐसे गाँव में चलता था जिसमे हर व्यक्ति अपना योगदान देता था | इसे पंचायत का आम कोष कहा जाता था इसका उपयोग निम्नलिखित ढंग से किया जाता था –
1. समय –समय पर गाँव का दौरा करने वाले अधिकारीयों की आवभगत का खर्चा इसी खज़ाने से किया जाता था |
2. इसी कोष से मुक्कदम तथा गाँव के चौकीदार को को वेतन किया जाता था |
3. इस कोष का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी होता था|
4. इस कोष से ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी खर्चा होता था जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे कि मिटटी के छोटे –मोटे बांध बनाना या नहर खोदना |
प्रश्न – अबुल फज़ल द्वारा अपने सम्राट के लिए बनायीं गयी राजवंशीय विचारधारा का वर्णन कीजिये |
उत्तर – अबुल फज़ल अकबर का विशेष मित्र था | उसने सम्राट के लिए एक नया राजत्व सिद्धांत प्रस्तुत किया | यह सिद्धांत तैमूरी परंपरा तथा एक सूफी सिद्धांत का मिश्रण था | इसी सूफी सिद्धांत के अनुसार प्रत्यक व्यक्ति में दैवी प्रकाश पुंज होता है और उसका सारा जीवन उसी के अनुसार चलता है | इस प्रकार अबुल कलाम ने सम्राट पद्द की ने अर्थों में व्याख्या की | उसके अनुसार अकबर को सम्राट पद्द न केवल दैवी देन है बल्कि जनता की ही देन है | इसलिए वह अपनी सभी जनता की भलाई के लिए उत्तरदायी है | संभवतः इसी कारण ही अकबर ने ‘सुलह कुल’ की निति अपनाई जो शांति पर आधारित थी |
प्रश्न – भारत में 16वीं – 17वीं शताब्दी के ग्रामीण जीवन की संक्षिप्त जानकारी दीजिये | ग्रामीण संसार में बाहरी शक्तियों के प्रवेश से क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर - 16वीं – 17वीं शताब्दी में भारत में लगभग 85 प्रतिशत लोग गांवों में रहते थे | छोटे लोग और धनी क्जमिनदार दोनों ही कृषि उत्पादन से जुड़े थे और दोनों ही फ़सल के हिस्सों के दावेदार थे | इससे उनके बीच सहयोग, प्रतियोगिता और संघर्ष के रिश्ते बने | खेती से जुड़े इन सभी रिश्तों से गांवों का समाज बनता था |
(1) बाहरी शक्तियों का प्रवेश – इसी समय कई बाहरी शक्तियों ने भी गांवों में प्रवेश किया | इनमे से सबसे महत्वपूर्ण मुग़ल राज्य था जो अपनी आय का बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन से प्राप्त करता था | वे चाहते थे कि खेतों की जुताई हो और राज्य को उपज से अपने हिस्से का कर समय पर मिल जाये |
(2) क्योंकि कई फसलें बिक्री के लिए उगाई जाती थी; इसलिए शहरी व्यापार, मुद्रा और बाजार भी गांवों से जुड़ गए |
प्रश्न - 17वीं शताब्दी में किसानों के दो वर्ग कौन –कौन से थे ? वर्णन कीजिये |
उत्तर – मुग़लकाल के भारतीय -फ़ारसी स्त्रोत किसान के लिए प्रायः रैयत या मुज्रियां शब्द का प्रयोग करते है | किसान या आसामी जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया गया है | 17वीं शताब्दी के ये स्त्रोत दो प्रकार से किसानों की जानकारी देते है – खुद -काश्त या पाहि -काश्त |
1. खुद –काश्त – इस प्रकार के किसान उन्हीं गांवों में रहते थे जिनमे उनकी जमीं होती थी |
2. पाहि –काश्त – यह किसान वे किसान थे जो दुसरे गांवों से ठेके पर खेती करने आते थे | कुछ लोग अपनी मर्जी से पाहि –काश्त बनते थे | कुछ लोग अकाल या भुखमरी के बाद आर्थिक परेशानी से विवश होकर भी पाहि –काश्त बसन जाते थे |
प्रश्न - 16वीं – 17वीं शताब्दी में सिंचाई साधनों में होने वाले विकास का वर्णन किजिये |
उत्तर – जमीं की अधिकता, मजदूरों की उपलब्धता तथा किसानों की गतिशीलता के कारण कृषि का लगातार विस्तार हुआ | क्योंकि खेती का प्राथमिक उद्देश्य लोगों का पेट भरना था, इसलिए चावल, गेहू, ज्वार इत्यादि फसले सबसे अधिक उगाई जाती थी | जिन इलाकों में प्रतिवर्ष 40 इंच या उससे अधिक वर्षा होती थी, वहां प्रायः चावल की खेती होती थी | कम तथा उसे भी कम वर्षा वाले प्रदेशों में क्रमशः गेहू तथा ज्वार –बाजरे की खेती अधिक प्रचलित थी |
आज की भांति मुगलकाल में भी मॉनसून को भारतीय कृषि की रीढ़ माना जाता था | परन्तु जिन फसलों के लिए अत्यधिक पानी की जरुरत थी, उनके लिए सिंचाई के कृत्रिम साधन विकसित करने पड़े | उदाहरण के लिए उत्तर भारत में राज्य में कई नए नहरे तथा नाले खुदवाए और कई पुरानी नहरों की मरम्मत करवाई | शाहजहाँ के शासन काल के दौरान पंजाब में शाह नहर इसका उदाहरण है|
प्रश्न - 17वीं शताब्दी के दौरान उत्तर भारत के एक औसत किसान की दशा का वर्णन कीजिये |
उत्तर – उत्तर भारत के औसत किसान के पास एक जोड़ी बैल और सो हल से अधिक कुछ नहीं होता था | अधिकतर किसानों के पास इससे भी कम था | गुजरात के जिन किसानों के पास 6 एकड़ तक जमीन थी वे समृद्ध माने जाते थे | दूसरी ओर बंगाल में एक औसत जमीन की उपरी सीमा 5 एकड़ थी | खेती व्यक्तिगत स्वामित्व के सिद्धांत पर आधारित थी | किसानों की जमीन उसी तरह खरीदी और बेची जाती थी जैसे अन्य संपति धारकों की |
“हल जोतने वाले खेतिहर किसान पर जमीन की सीमा पर मिटटी, ईंट और काँटों से पहचान के लिए निशान लगाते थे | जमीन के ऐसे हजारों टुकड़े किसी भी गाँव में देखे जा सकते है |”
प्रश्न – मुग़लकाल में कृषि में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों का संक्षिप्त परिचय दीजिये |
उत्तर – मुग़लकाल में कृषि में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों का वर्णन निम्नलिखित है –
(1) लकड़ी का हल्का हल -एक उदाहरण ऐसा है | इसके एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर बनाया जाता था | ऐसे हल मिट्टी को ज्यादा गहरा नहीं खोदते थे जिसके कारण तेज गर्मी के महीनों में मिट्टी में नमी बची रहती थी|
(2) बैलों के सहारे खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग बीज बोने के लिए किया जाता था | परन्तु बीजों का ज्यादातर हाथ से ही बोया जाता था |
(3) मिट्टी की गुड़ाई और निराई के लिए लकड़ी के मुठ वाले लोहे के पतले धार काम में लाये जाते थे |
प्रश्न – “राजस्व मुग़ल सम्राज्य की आर्थिक बुनियाद थी ?” व्यापार के सन्दर्भ में इस कथन को स्पष्ट कीजिये |
उत्तर – मुग़ल राज्य के भू राजस्व में वृद्धि से व्यापार को बहुत अधिक बढ़ावा मिला नकद राजस्व में मुद्रा से वृद्धि हुई जिससे व्यापारिक लेनदेन आसान हो गया | स्थानीय व्यापार नी विदेशी व्यापार को भी नई दिशा दी जो विदेशों से बड़ी नात्र में भारत में चाँदी के बहाव का स्त्रोत बना | इस प्रकार व्यापार ने मुगलों की अर्थव्यवस्था की बुनियादी को और भी मजबूत बनाया |
प्रश्न – मुगलकाल में गाँव की पंचायतों का गठन कैसे होता था ? पंचायत के मुखिया की क्या स्थिति थी ?
उत्तर – पंचायतों का गठन – गांवों की पंचायत गांवों के बुजर्गों की सभा होती थी | सिर्फ गाँव के महत्वपूर्ण लोग हुआ करते थे जिनके पास अपनी संपति होती थी | जिन गांवों में विभिन्न जातियों के लोग रहते थे, वहां पंचायत में भी विविधता पाई जाती थी | पंचायत का निर्णय गाँव में सबको मानना पड़ता था |
पंचायत का मुखिया – पंचायत के मुखिया को मुकद्दम या मंडल कहते थे | कुछ स्त्रोतों से प्रतीत होता है कि मुखिया का चुनाव गाँव के बुजर्गों की आम सहमति से होता था | चुनाव के बाद उन्हें इसकी मंजूरी जमींदार से लेनी पड़ती थी | मुखिता अपने पद पर तभी तक बना रहता था जब तक गाँव के बुजर्गों को उस पर भरोसा होता था | भरोसा न रहने पर बुगुर्ग उसे पद से हटा सकते थे | गाँव के आय –व्यय का हिसाब –किताब अपनी निगरानी में तैयार करवाना मुखिया का मुख्य काम था | इस काम मे पंचायत का पटवारी उसकी सहायता करता था |
प्रश्न – मुग़ल के अध्ययन के स्त्रोत के रूप में ‘आइन –ए –अकबरी’ के किन्ही तीन सशक्त तथा दो कमजोर पहलुओं की विवेचना कीजिये |
उत्तर – सशक्त पहलु – (1) आइन मुग़ल सम्राज्य के गठन और संरचना की मंत्रमुग्ध करने वाली झलकियाँ दिखती है |
(2) इसमें भारत के लोगों तथा मुगल सम्राज्य के बारे में विस्तृत सूचनाएँ दर्ज है |
(3) आइन में दिए गए कृषि से सम्बंधित सांख्यिकी सूचनाएं बहुत ही महत्वपूर्ण है| (4) आइन द्वारा दी गयी सूचनाएँ मुग़ल कालीन इतिहास की रचना करने वाले इतिहासकारों के लिए बहुमूल्य है |
कमजोर पहलु अथवा सीमाएँ – (1) जोड़ करने में कई त्रुटियाँ रह गई है |
(2) सभी सूबों के आँकड़े सामान रूप से एकत्रित नहीं किए जा सके |
प्रश्न - 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में पंचायत का आम खज़ाना क्या था और इसका क्या महत्व था ?
उत्तर – पंचायत का खर्चा गाँव के ऐसे खजाने से चलता था जिसमे हर व्यक्ति अपना योगदान देता था | इसे पंचायत का आम खज़ाना कहा जाता था |
महत्व – (1) समय -समय पर गाँव का दौरा करने वाले अधिकारीयों की आवभगत का खर्चा इसी खजाने से किया जाता था |
(2) इसी कोष से मुकद्दम तथा गाँव के चौकीदार को वेतन दिया जाता था |
(3) इसी कोष से ऐसे सामुदायिक कार्यों के लिए भी खर्चा होता था जो किसान स्वयं नहीं कर सकते थे, जैसे की मिट्टी के छोटे –मोटे बाँध बनाना या नहर खोदना|
(4) इस कोष का प्रयोग बाढ़ जैसी प्राकृतिक विपदाओं से निपटने के लिए भी होता था |
प्रश्न - 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में पंचायतों के कार्यों और अधिकारों का वर्णन कीजिये |
उत्तर – पंचायत का एक बड़ा काम यह देखना था कि गाँव में रहने वाले सभी समुदाय के लोग अपनी जाति की सीमाओं के अन्दर रहे | पूर्वी भारत में सभी शादियाँ मंडल की उपस्थिति में होती थी | “जाति की अवहेलना को रोकने के लिए” लोगों के आचरण पर नजर रखना गाँव की मुखिया की एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी थी |
समुदाय से बाहर निकलना एक बड़ा कदम था जो एक सीमित समय के
लिए लागु किया जाता था | इस दौरान वह अपनी जाति तथा व्यवसाय से हाथ धो बैठता था | ऐसी नीतियों का उद्देश्य जातिगत रिवाजों की अवहेलना को रोकना था|
प्रश्न - 16वीं तथा 17वीं शताब्दीयों के दौरान बाहरी शक्तियां जंगल में किस बहाने से घुसती थी ? मुग़ल राजनितिक विचारधारा में जंगल में शिकार अभियान का क्या महत्व था ?
उत्तर – बाहरी शक्तियां जंगल में कई तरह से घुसती थी; उदाहरण के लिए राज्य को सेना के लिए हाथियों की जरुरत होती थी | इसलिए जंगलवासियों से ली जाने वाली भेंट में प्रायः हाथी भी शामिल होते थे | मुग़ल राजनितिक विचारधारा में शिकार अभियान राज्य के लिए गरीबों और अमीरों सहित सभी को न्याय प्रदान करने का एक माध्यम था | दरबारी कलाकारों के चित्रों में शिकार के बहुत –से दृश्य दिखाए गए है | इन चित्रों में चित्रकार प्रायः छोटा -सा एक ऐसा दृश्य दाल देते थे जो शासन के सद्दभावनापूर्ण होने का संकेत देता था |
प्रश्न – मुगलकालीन जंगली कबीलों के सरदारों को सेना तैयार करने की जरुरत क्यों पड़ी ? उन्होंने सैनिक सेवाएं कहाँ से प्राप्त कीं ?
उत्तर – ग्रामीण समुदाएँ के ‘बड़े आदमियों’ की तरह जंगली कबीलों के भी सरदार होते थे | कुछ सामाजिक कारणों से स्थिति में परिवर्तन आया | कई जंगली कबीलों के सरदार जमींदार बन गए | कुछ तोह राजा भी बन गए ऐसे में उन्हें सेना तैयार करने की जरुरत पड़ी | अतः उन्होंने अपने परिवार के लोगों को ही सेना में भर्ती किया था | फिर अपने ही भाई से सैन्य सेवा की मांग की | असम में, अहोम राजाओं के अपने पायक होते थे | ये वे लोग थे जिनसे जमीन के बदले सैनिक सेवा ली जाती थी | अहोम राजाओं ने जंगली हाथी पकड़ने पर अपने अधिकार की घोषणा कर रखी थी |