अध्याय-समीक्षा
नारीवादी : समाज के वे लोग जो महिलाओं और पुरुषों के समान अधिकारों एवं अवसरों में विश्वास रखते है या हिमायती हैं | नारीवादी कहलाते हैं |
धर्म निरपेक्ष राज्य : वह राज्य जिसमें सभी धर्मों को समान महत्त्व दिया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता होती है |
जातिवादी : उच्च जाति और निम्न जाती के बीच सामाजिक तनाव को जातिवादी कहते है |
साम्प्रदायिकता : अपने धर्म को दुसरे के धर्मों से श्रेष्ठ मानने की मानसिकता को साम्प्रदायिकता कहते है |
पारिवारिक कानून : विवाह, तलाक, गोद लेने तथा उतराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून को पारिवारिक कानून कहते हैं |
श्रम का लैंगिक विभाजन : काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं | श्रम का लैंगिक विभाजन कहलाता है |
पितृ-प्रधान समाज : ऐसा समाज जिसमें परिवार का मुखिया पिता होता है और उन्हें औरतों की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त होता है |
अंतिम जनगणना : अंतिम जनगणना 2011 में हुई है | जनगणना प्रत्येक 10 वर्ष के बाद होता है |
धर्मनिरपेक्षता : ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य का कोई अपना धर्म नहीं होता | सभी धर्मों को एक सामान महत्व दिया जाता है और नागरिकों किसी भी धर्म या मत को अपनाने या उपासना करने की आजादी होती है |
वर्ण-व्यवस्था : विभिन्न जातीय समूहों का समाज में पदानुक्रम को वर्ण व्यवस्था कहते हैं |
सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार : किसी राज्य में 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के सभी लोगों को एक सामान रूप से मत देने का अधिकार है इसे ही सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार कहते है |
जातिवाद : जाति के आधार पर लोगों से भेदभाव जातिवाद कहलाता है |
अनुसूचित जातियाँ: वे जातियाँ जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में उच्च जातियों से अलग और अछूत मानी जाती हैं। जो दलित के रूप में मानी जाती हैं तथा जिनका अपेक्षित विकास नहीं हुआ है।
अनुसूचित जनजातियाँ: ऐसा समुदाय जो साधारणतया पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में रहते हैं और जिनका बाकी समाज से अधिक मेलजोल नहीं है। साथ ही उनका विकास नहीं हुआ है। अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 16.2 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजातियों का
प्रतिशत 8.2 प्रतिशत है।