धमनभट्टी का अविष्कार : प्रथम अब्राहम डर्बी (1677-1717) द्वारा किया गया |
धमनभट्टी के अविष्कार के लाभ :
(i) इसमें सर्वप्रथम 'कोक' का इस्तेमाल किया गया | कोक में उच्च ताप उत्पन्न करने की शक्ति थी | और यह पत्थर कोयले से गंधक तथा अपद्रव्य निकलकर तैयार किया जाता था |
(ii) भट्ठियों को काठकोयले पर निर्भर नहीं रहना पड़ा |
(iii) इससे निकला हुआ लोहा से पहले की अपेक्षा अधिक बढ़िया और लंबी ढलाई की जा सकती थी |
पिटवा लोहे का विकास : द्वितीय डर्बी (1711-68) से ढलवा लोहे से पिटवां लोहे का विकास किया,
जो कम भंगुर था |
आलोडन भट्टी : हेनरी कोर्ट (1740-1823) ने आलोडन भट्टी और बेलन मिल का अविष्कार किया, जिसमें परिशोधित लोहे से छड़ें तैयार करने के लिए भाप की शक्ति का इस्तेमाल किया जाता था |
इस अविष्कार से लोहे के अनेकानेक उत्पाद बनाना संभव हो गया |
जॉन विल्किंसन द्वारा बनाये गए लोहे का औजार : जॉन विल्किंसन ने सर्वप्रथम
(i) लोहे की कुर्सियां, (ii) आसव (iii) शराब की भट्ठियों के लिए टंकियाँ (iv) लोहे की सभी आकारों के लिए नालियाँ (पाइप) बनाई |
ब्रिटेन में जहाज-निर्माण और नौपरिवहन का व्यापार बढ़ने का कारण :
(i) लोहा उद्योग कुछ क्षेत्रों में कोयला खनन तथा लोहा प्रगलन की मिली-जुली इकाइयों के रूप में केन्द्रित हो गया था |
(ii) एक ही पट्टियों में उत्तम कोटि का कोकिंग कोयला और उच्च-स्तर का लौह खनिज साथ-साथ पाया जाता था | ये द्रोणी-क्षेत्र पत्तनों के पास ही थे |
(iii) वहाँ ऐसे पाँच तटीय कोयला-क्षेत्र थे जो अपने उत्पादों को लगभग सीधे ही जहाजों में लदवा सकते थे।
ब्रिटेन में लौह उद्योग के फलने-फूलने का कारण :
(i) ब्रिटेन के लौह उद्योग ने 1800 से 1830 के दौरान अपने उत्पादन को चौगुना बढ़ा लिया और
उसका उत्पादन पूरे यूरोप में सबसे सस्ता था।
(ii) 1820 में, एक टन ढलवाँ लोहा बनाने के लिए 8 टन कोयले की जरूरत होती थी, किन्तु 1850 तक आते-आते यह मात्रा घट गई और केवल 2 टन कोयले से ही एक टन ढलवाँ लोहा बनाया जाने लगा।
(iii) 1848 तक यह स्थिति आई कि ब्रिटेन द्वारा पिघलाए जाने वाले लोहे की मात्रा बाकी सारी दुनिया द्वारा कुल मिलाकर पिघलाए जाने वाले लोहे से अधिक थी।
स्पिनिंग जेनी : यह एक कताई मशीन है जिसे जेम्स हरग्रिव्ज़ ने 1765 में बनाई | यह एक ऐसी मशीन थी जिसपर एक अकेला व्यक्ति एक साथ कई धागे कात सकता था | जिसके कारण बुनकरों को उनकी आवश्यकता से अधिक तेजी से धागे मिलने लगा |
म्यूल : यह एक ऐसी मशीन का उपनाम था जो 1779 में सैम्युअल क्रोम्पटन द्वारा बनाई गई थी | इससे काता हुआ धागा बहुत मजबूत और बढ़िया हुआ करता था |
कपास उद्योग की दो प्रमुख विशेषताएँ :
(i) कच्चे माल के रूप में आवश्यक कपास सम्पूर्ण रूप से आयात करना पड़ता था |
(ii) यह उद्योग प्रमुख रूप से कारखानों में काम करने वाली स्त्रियों तथा बच्चों पर बहुत ज्यादा निर्भर था |
भाप शक्ति की विशेषताएँ :
(i) भाप की शक्ति उच्च तापमानों पर दबाव पैदा करती जिससे अनेक प्रकार की मशीनें चलाई जा सकती थीं।
(ii) भाप की शक्ति ऊर्जा का अकेला ऐसा स्रोत था जो मशीनरी बनाने के लिए भी भरोसेमंद और कम खर्चीला था।
भाप की शक्ति का इस्तेमाल : भाप की शक्ति का इस्तेमाल सर्वप्रथम खनन उद्योग में किया गया |
थॉमस सेवरी के भाप इंजन की कमियाँ : ये इंजन छिछली गहराइयों में धीरे-धीरे काम करते थे, और अधिक दबाव हो जाने पर उनका वाष्पित्र (बॉयलर) फट जाता था।
थॉमस न्यूकोमेंन के भाप इंजन की कमियाँ : इसमें सबसे बड़ी कमी यह थी कि संघनन बेलन (कंडेंसिंग सिलिंडर) लगातार ठंडा होते रहने से इसकी ऊर्जा खत्म होती रहती थी जेम्स वाट के भाप इंजन की विशेषताएँ :
(i) यह केवल एक साधारण पम्प की बजाय एक प्राइम मूवर (चालक) के रूप में काम करता था |
(ii) इससे कारखानों में शक्तिचालित मशीनों को उर्जा मिलने लगी |
(iii) यह अन्य इंजनों के मुकाबले अधिक शक्तिशाली था, जिससे इसका अधिक इस्तेमाल होने लगा |