आहार श्रृंखला (Food Chain) :
आहार श्रृंखला (Food Chain) : जीवों की वह श्रृंखला जिसके प्रत्येक चरण में एक पोषी स्तर का निर्माण करते हैं जिसमें जीव एक-दुसरे का आहार करते है | इस प्रकार विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की इस श्रृंखला को आहार श्रृंखला कहते हैं |
उदाहरण :
(a) हरे पौधे ⇒ हिरण ⇒ बाघ
(b) हरे पौधे ⇒टिड्डा ⇒मेंढक ⇒साँप ⇒गिद्ध /चील
(c) हरे पौधे ⇒बिच्छु ⇒मछली ⇒बगूला
आहार जाल (Food Web) : विभिन्न आहार श्रृंखलाओं की लंबाई एवं जटिलता में काफी अंतर होता है। आमतौर पर प्रत्येक जीव दो अथवा अधिक प्रकार के जीवों द्वारा खाया जाता है, जो स्वयं अनेक प्रकार के जीवों का आहार बनते हैं। अतः एक सीधी
आहार श्रृंखला के बजाय जीवों के मध्य आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित श्रृंखलाओं का एक जाल बनाते हैं जिससे ‘आहार जाल’ कहते हैं |
आहार श्रृंखला और आहार जाल में अंतर :
आहार श्रृंखला :
(i) इसमें कई पोषी स्तर के जीव मिलकर एक श्रृंखला बनाते है |
(ii) इसमें ऊर्जा प्रवाह की दिशा रेखीय होती है |
(iii) आहार श्रृंखला समान्यत: तीन या चार चरण की होती है |
आहार जाल :
(i) इसमें कई आहार श्रृंखलाएँ एक दुसरे से जुडी होती हैं |
(ii) इसमें ऊर्जा प्रवाह शाखान्वित होती है |
(iii) यह यह एक जाल की तरह होता है जिसमें कई चरण होते है |
सूर्य से प्राप्त ऊर्जा : एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधे की पत्तियों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।
ऊर्जा प्रवाह का 10 % नियम : एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है जबकि 90% ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है। इसे ही ऊर्जा प्रवाह का 10% नियम कहते हैं |
उदाहरण : विभिन्न पोषी स्तर
उत्पादक ⇒ प्राथमिक उपभोक्ता ⇒ द्वितीय उपभोक्ता ⇒ तृतीय उपभोक्ता
माना यदि उत्पादकों में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जो 1% के रूप में 1000 J है तो ऊर्जा प्रवाह के 10% नियम के अनुसार -
ऊर्जा प्रवाह :
उत्पादक में 1000 J है तो प्राथमिक उपभोक्ता में यह उर्जा केवल 100 J जाएगा | जबकि उसके अगले पोषी स्तर यानि द्वितीय पोषी स्तर में यह 10 % के हिसाब से 10 J ही जा पायेगा और तृतीय उपभोक्ता में केवल 1 जुल ही जा पाता है |
उत्पादक ⇒ प्राथमिक उपभोक्ता ⇒ द्वितीय उपभोक्ता ⇒ तृतीय उपभोक्ता
1000 J ⇒ 1000 J का 10% = 100 J ⇒ 100 J का 10 % = 10 J ⇒ 10 J का 10 % = 1 J
आहार श्रृंखला के तीन या चार चरण होने के कारण :
उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत ही कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार ९ाृंखला में सामान्यतः तीन अथवा चार चरण ही होते हैं। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा कम हो जाती है।
आहार श्रृंखला में ऊर्जा प्रवाह चक्रीय नहीं रेखीय होती है : कारण -
ऊर्जा का प्रवाह एकदिशिक अथवा एक ही दिशा में होता है अर्थात रेखीय होता है क्योंकि स्वपोषी जीवों (हरे पौधों) द्वारा सूर्य से ग्रहण की गई ऊर्जा पुन: सौर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती तथा शाकाहारियों को स्थानांतरित की गई ऊर्जा पुनः स्वपोषी जीवों को उपलब्ध नहीं होती है। जैसे यह विभिन्न पोषी स्तरों पर क्रमिक स्थानांतरित होती है अपने से पहले स्तर के लिए उपलब्ध नहीं होती। और अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचते-पहुँचते यह नाम मात्र ही रह जाता है जो पुन: और ऊर्जा में परिवर्तित नहीं हो पाता है |
आहार श्रृंखला में आपमर्जकों की भूमिका (Role of Decomposers in Food Chain):
विघटनकारी सूक्ष्मजीव है जो उत्पादकों और उपभोक्ताओं के मृत और क्षय शरीर पर क्रिया करते हैं और उन्हें सरल अकार्बनिक यौगिकों में तोड़ देते है। वे कुछ पदार्थों को अवशोषित करते हैं और बाकी को वातावरण में पुन:चक्रण के लिए या भविष्य में उत्पादको द्वारा उपयोग करने के लिए छोड़ देते है | पर्यावरण में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है -
(i) ये जैव अपशिष्टो का अपमार्जन करते हैं और इन्हें सरल पदार्थों में परिवर्तित करते हैं |
(ii) ये मृदा में कुछ पोषक तत्वों को स्थापित करते है और मृदा को उपजाऊ बनाते हैं |