2. वन एवं वन्य जीव संसाधन
जैव-विविधता : पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु पेड़-पौधें आदि पाए जाते हैं, इसे ही जैव विविधता कहते है | इन जीवों के आकार तथा कार्यों में भी भिन्नता पाई जाती है |
पारिस्थितिक तंत्र : एक विशेष क्षेत्र में रहने वाले सभी जीव-जंतु एवं वनस्पति एक दुसरे पर निर्भर रहते हैं तथा एक दुसरे को फायदा पहुँचाते हैं और आपस में एवं मिल-जुल कर रहते हैं | इस प्रकार उस क्षेत्र के जैव एवं अजैव घटक मिलकर एक तंत्र का निर्माण करते है जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं |
वनों की पारिस्थितिक तंत्र में भूमिका : पारिस्थितिक तंत्र के निर्माण में वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | क्योंकि ये प्राथमिक उत्पादक हैं जिनपर दुसरे सभी जीव निर्भर करते हैं | जैसे- वनों एवं कृषि उत्पादों को सभी जीव-जंतु एवं मनुष्य उपभोग करते हैं | पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाये रखने में वनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है | सभी जीव श्वसन क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं एवं ऑक्सीजन लेते हैं जबकि वन कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते है, जिससे पारिस्थितिक तंत्र में एक संतुलन बना रहता है परन्तु यदि वनों की संख्या कम हो जाए तो यह संतुलन बिगड़ सकता है |
मानव जीवन के लिए जैव-विविधता का महत्त्व : जैव-विविधता मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव एवं अन्य जीवधारी मिलकर ही इस जटिल पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते है, जो अपने अस्तित्व के लिए एक दुसरे पर निर्भर करते हैं | जैसे- हमें साँस लेने के लिए वायु, पीने के लिए पानी एवं अनाज उगाने के लिए मृदा की आवश्यकता होती है, और हम इनका उपभोग भी करते है | पौधे, पशु एवं सूक्ष्मजीव पुन: इनका सृजन करते हैं |