शासक और इतिवृत्त
प्रश्न - सम्राट अपना दिन झरोखे तथा दीवान-ए-आम से कैसे प्रारंभ करता था ? संक्षेप में वर्णन कीजिये |
उत्तर – झरोखा दर्शन की प्रथा अकबर ने आरंभ की थी | इसके अनुसार बादशाह अपने दिन का आरंभ सूर्योदय के समय कुछ धार्मिक प्रार्थनाओं से करता था | इसके बाद वह पूर्व की और मुँह किये एक झरोखे में आता था | इसके निचे खड़े लोगों की भीड़ बादशाह की एक झलक पाने के लिए इंतजार कर रही होती थी | इसका उद्देश्य शाही सत्ता के प्रति लोगों के विश्वास को बढ़ावा देना था | झरोखे में एक घंटा बिताने के बाद सम्राट प्राथमिक सरकारी कार्यों के संचालन के लिए दीवान – ए –आम में आता था | वह राज्य के अधिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे तथा निवेदन करते थे |
प्रश्न – अकबर के धार्मिक विचार किस प्रकार परिपक्व हुए ? इनमे क्या बड़ा परिवर्तन आया ?
उत्तर - अकबर की धार्मिक ज्ञान की चाह ने फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में विद्वान मुसलमानों, हिन्दुओं, जैनियों पारसियों और ईसाइयों के बीच अंतर धर्मीय वाद्विवादों को जन्म दिया | अकबर के धार्मिक विचार विभिन्न धर्मों तथा सम्प्रदायों के विद्वानों से प्रश्न पुछने और उनके धर्म -सिद्धांतों के बारे में जानकारी प्राप्त करने से परिपक्व हुए | अब उसके झुकाव प्रकाश और सूर्य पर केन्द्रित दैवीय उपासना की ओर हो गया | इसमें दैवीय रूप से प्रेरित व्यक्ति का अपने लोगों पर सर्वोच्च प्रभुत्व तथा अपने शत्रुओं पर पूर्ण नियंत्रण होता है |
प्रश्न - मुग़ल सम्राट की दरबारी प्रक्रिया सम्राट के स्तर तथा शक्ति को किस प्रकार प्रदर्शित करती है ? विश्लेषण कीजिये |
उत्तर – 1.राज सिहांसन सम्राट के उच्च स्तर को दर्शाता था |
2. छतरी मुग़ल राजतंत्र का प्रतिक थी |
3. दरबार में सभी दरबारियों का स्थान निश्चित था जो उसके दर्जे को दर्शाता था | दरबार में राजा के बैठ जाने के बाद कोई भी दरबारी अपना स्थान कभी नहीं बदल सकता था और न ही वह बादशाह की अनुमति के बिना बाहर जा सकता था |
4. दरबारी समाज पर नियन्त्रण के लिए अभिवादन तथा बोलने के विशेष नियम थे |
5. राजनितिक दूतों से भी उचित अभिवादन की अपेक्षा की जाती थी |
प्रश्न – मुग़ल शासकों ने अपने राजवंशीय इतिहास क्यों लिखवाए ?
उत्तर – मुग़ल शासक यह मानते थे कि उन्हें एक विशाल तथा विजातीय जनता पर शासन के लिए स्वयं ईश्वर ने नियुक्त किया है | इस द्रिशटी कों के प्रचार का प्रसार का एक तरीका राजवंशीय इतिहास लिखना लिखवाना था | मुग़ल शासकों ने अपने दरबारी इतिहासकारों को विवरण लेखन का कार्य सौंपा | इन विवरणों ममे सम्बंधित बादशाह के समय के समय की घटनाओं का लेखा –जोखा दिया गया | इसके अतरिक्त इन लेखनों ने उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से बहुत सी जानकारियाँ इकट्ठी की जिससे बादशाह को शासन चलाने में सहायता मिली |
प्रश्न – जलालुद्दीन अकबर के अंतर्गत मुग़ल सम्राज्य का न केवल विस्तार हुआ अपितु इसे सुदृढ़ भी बनाया गया | संक्षेप में वर्णन कीजिये |
उत्तर - जलालुद्दीन अकबर को सबसे महान मुग़ल शासक माना जाता है | इसके निम्नलिखित कारण है –
1. अकबर ने न केवल साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि उसे सुदृढ़ और समृद्ध भी बनाया |
2. वह अपने सम्राज्य की सीमाओं का विस्तार हिंदुकुश पर्वत तक करने में सफल रहा|
3. उसने ईरान के सुफावियों और तुरान के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाये रखी |
4. अकबर द्वारा अपनाई न्याय प्रणाली आदर्श थी |
5. उसने मुग़ल प्रशासन को व्यवस्थित किया | उदारता और सहनशीलता इसके दो मुख्य लक्षण थे |
प्रश्न – मुग़ल बादशाह शासन पर दैवीय अधिकार रखते थे | इस विचार को किस प्रकार संप्रेषित किया गया ?
उत्तर - दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि मुग़ल राजाओं को सीधे ईश्वर से शक्ति प्राप्त हुई थी | उनके द्वारा वर्णित दंतकथाओं मे से एक कथा मंगोल रानी अलान्कुआ की है | यह अपने शिवीर में आराम करते समय सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई थी | उसकी संतान पर इसी दैवीय प्रकाश का प्रभाव था | यह प्रकाश पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही है |
इस विचार के अनुसार यह दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता था जिसके फलस्वरूप राजा अपनी प्रजा का आध्यात्मिक मार्गदर्शक बन जाता था |
प्रश्न – मुग़ल इतिवृत्त की विशेषताओं का वर्णन कीजिये | मुग़ल इतिहास लेखन के लिए इनका क्या महत्व है ?
उत्तर – 1. मुग़ल इतिवृत्त मुग़ल बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए राजवंशीय इतिहास है |
2. यह इतिवृत्त घटनाओं का कालक्रम अनुसार विस्तृत करते है |
3. मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक किसी भी विद्वान के लिए यह इतिवृत्त अनिवार्य स्त्रोत है |
4. इस प्रकार यह इतिवृत्त हमें इस बात की झलक देते है कि शाही विचारधाराएँ किस प्रकार रची तथा प्रचारित की जाती थी |
5. एक तरफ यह इतिवृत्त मुग़ल राज्य की संस्थाओं के बारे में जानकारी देते है, तो दूसरी ओर यह उन उद्देश्यों पर प्रकाश डालते है जिन्हें मुग़ल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे |
प्रश्न – ‘इतिहासकारों ने मुग़ल सम्राज्य की पडोसी राजनीतिक शक्तियों के साथ राजनीतिक रिश्तों और संघर्षों का विवरण दिया है |’ सविस्तार व्याख्या कीजिये |
उत्तर – मुग़ल राजाओं तथा उनके पड़ोसी ईरान एवं तुरान के बीच राजीनीतिक संबंध हिन्दुकुश पर्वतों द्वारा निर्धारित सीमाओं के नियंत्रण पर निर्भर करते थे | भारतीय उपमहाद्वीप में जो आना चाहते थे उन सभी को उत्तर भारत तक पहुँचने के लिए हिंदुकुश को पार करना पड़ता था | अतः मुगलों की हमेशा यह निति रहती थी कि इस खतरे से बचने के लिए सामरिक महत्त्व की चौकियों काबुल तथा कंधार पर नियंत्रण रखा जाए | 1595 में अकबर ने इसे पुनः जीत लिया था | साफ़वियों ने मुगलों के साथ अपने राजनितिक संबंध बनाये रखे तथापि वे कंधार पर अपना दावा करते रहे | 1613 में जहाँगीर ने ईरानी शासक शाह अब्बास के दरबार में एक दूत भेजा | परन्तु उस समय मुग़ल अधिकार को वकालत करना था| 1622 में एक सफावी सेना ने कंधार पर घेरा डाल दिया | मुग़ल सेना पूरी तरह से तैयार नहीं थी | अतः वह पराजित हुई और उसे किला तथा नगर सफ़ावियों को सौंपने पड़े |
प्रश्न – ऑटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों के संबंधों पर प्रकाश डालिए |
उत्तर - ऑटोमन साम्राज्य के साथ मुगलों के संबंधों का उद्देश्य ऑटोमन नियंत्रण वाले क्षेत्रों में व्यापारियों तथा तीर्थयात्रियों के आवागमन को निर्बाध बनाये रखना था | मुग़ल बादशाह प्रायः इस क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को धर्म एवं वाणिज्य के मामलों से जोड़ते थे | वे लाल सागर के बदंरगाह अदन और मोखा को बहुमूल्य वस्तुओं का नर्यात करते थे |इन बिक्री से मिलने वाली आय को उन प्रदेश के धर्मस्थलों तथा फकीरों में बाँट दिया जाता था परन्तु औरंगजेब को जब अरब भेजे जाने वाले धान के दुरूपयोग का पता चला तो उसने भारत में ही इसके वितरण पर बल दिया क्योंकि उसका मानना था की “यह भी वैसा ही ईश्वर का घर है जैसे की मक्का |”
प्रश्न – गुलबदन बेगम कौन थी ? उसके द्वारा रचित “हुमायूँनामा” पर एक संक्षिप्त टिपण्णी कीजिये |
उत्तर – गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री तथा हुमायूँ की बहन थी | उसके द्वारा रचित “हुमायूँनामा” से हमें मुगलों की घरेलु दुनिया की एक झलक मिलती थी |वह तुर्की और फारसी में लिखती थी | जब अकबर ने अबुल फजल को अपने शासन का इतिहास लिखने को नियुक्त किया था तो उसने गुलबदन से बाबर और हुमायूँ के समय के संमर्नों को लिखने का भी आग्रह किया था ताकि अबुल फजल उसका लाभ उठाकर अपनी कृति को पूरा कर सके |
गुलबदन ने जो लिखा था वह बादशाह की प्रशस्ति नहीं थी | उसने संघर्षों को सुलझाने में परिवार की वृद्ध स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिकाओं के बारे में भी विस्तार से लिखा |
प्रश्न – मुगलों के अभिजात वर्ग की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए |
उत्तर – अभिजात से अभिप्राय मुगल अधिकारियों के महत्वपूर्ण दल से है | निम्नलिखित बातें मुग़ल साम्राज्य के लिए उनके महत्व को दर्शाती है –
1. इनकी भारती विभिन्न नृजातीय समूह तथा धार्मिक वर्गों से होती थी; जैसे – तूरानी, ईरानी, राजपूत, हिन्दू आदि |
2. इस बात का ध्यान रखा जाता था कि कोई भी समूह इतना बड़ा न हो जाये कि राज्य के लिए खतरा बन जाये |
3. प्रत्येक अधिकारी का पद अथवा मनसब निश्चित था |
4. अभिजात सैनिक अभियानों में अपने सैनिक के साथ भाग लेते थे | वे प्रशासनिक कार्य करते थे |
5. राज्य में ऊंचा स्तर स्तर होने के कारण अभीजात वर्ग काफी धनी तथा शक्तिशाली था | उसे समाज में बहुत अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी |
प्रश्न – अबुल फज़ल द्वारा अपने सम्राट के लिए रचित वंशागत विचारधारा की विवेचना कीजिये |
उत्तर – अबुल फज़ल अकबर का विशेष मित्र था | उसने सम्राट के लिए एक नया राजस्व सिद्धांत प्रस्तुत किया | यह सिद्धांत तैमूरी परम्परा अता एक सूफी सिद्धांत का मिश्रण था | इस प्रकश पुंज द्वारा ऊँचे वर्ग के लोग अपने युग के स्वामी बन जाते है | इस प्रकार अबुल फज़ल ने सम्राट पद की एक नयी अर्थों में व्याख्या की | उसके अनुसार अकबर की सम्राट पद न केवल दैवी देन है बल्कि जनता की भी देन है | इसलिए वह अपनी समस्त जनता के लिए उत्तरदायी है | उसका कर्तव्य है की प्रशासन के साथ साथ अपनी जनता को बिना किसी धार्मिक तथा जातीय भेद भाव के न्याय प्रदान करे | संभवतः इसी कारण ही अकबर ने ‘सुलह –ए –कुल’ की नीति अपनाई जो शांति पर आधारित थी |
प्रश्न – ‘मुग़ल साम्राज्य का ह्रदय स्थल उसके राजधानी नगर थे |’ उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिये |
उत्तर – इसमे कोई संदेह नहीं कि मुग़ल साम्राज्य का ह्रदय स्थल उसके राजधानी नगर थे | यही नगर मुगलों के केंद्र थे | उदाहरण के लिए लोदियों की राजधानी आगरा पर अधिकार कार लिया था, परन्तु उसके शासन के चार वर्षों के दौरान राजसी दरबार भिन्न –भिन्न स्थानों पर लगाये जाते रहे | 1560 के दशक में अकबर ने आगरा के किले का निर्माण करवाया | जिसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया था |
1648 में मुग़ल दरबार तथा राज परिवार, सेना व राजसी खानदान आगरा से नव –निर्मित शाही राजधानी शाहजहाँनाबाद चले गए | जामा मस्जिद, चाँदनी चौक के बाजार की वृक्ष विधि और अभिजात वर्ग के बड़े – बड़े घर स्थित थे | शाहजहाँ का यह नया शहर विशाल एवं भव्य राजतंत्र की औपचारिक कल्पना का प्रतीक था |
प्रश्न – औपनिवेशिक काल में एतिहासिक पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए क्या प्रयास किये गए ?
उत्तर - औपनिवेशिक काल के अंग्रेज शासकों के दौरान ने अपने सम्राज्य के लोगों और संस्कृतियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए भारतीय इतिहास का अध्ययन करना आरंभ किया | उन्होंने इस संबंध में एक अभिलेखगार भी स्थापित किया | 1784 में सर विलियम जोन्स द्वारा स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल ने कई भारतीय पांडुलिपियों के संपादन, प्रकाशन और अनुवाद का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया है |
अकबरनामा और बादशाहनामा के संपादित प्रारूप सर्वप्रथम एशियाटिक सोसाइटी द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में प्रकाशित किय गए | बीसवीं शताब्दी आरंभ में हेनरी बेवरिज ने अकबरनामा का अंग्रेजी में अनुवाद किया | बादशाह के अभी तक केवल कुछ ही अंशों का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है |