बंधुत्व, जाति तथा वर्ग :आरंभिक समाज
प्रश्न – ‘महाभारत’ बदलते रिश्तों की एक कहानी है | स्पष्ट कीजिये | इसने पितृवंशिकता के आदर्श को कैसे सुदृढ़ किया ?
अथवा
महाभारत के संबंध में बंधुता के रिश्तों में किस प्रकार परिवर्तन आया ? वर्णन कीजिये |
उत्तर – महाभारत वास्तव में ही एक बदलते रिश्तों की एक कहानी है | यह चचरे भाइयो के दो दलों –कौरवो और पांडवो के बीच भूमि और सत्ता को लेकर हुए संघर्ष का वर्णन करती है | दोनों ही दल कुरु वंश से संबंधित थे जिनका कुरु जनपद पर शासन था | उनके संघर्ष ने अंततः एक युद्ध का रूप ले लिया जिसमे पांडव विजय हुए | इसके बाद पितृवंशिक उत्तराधिकार की उद्घोषणा की गयी | भले ही पितृवंशिकता की परंपरा महाकाव्य की रचना से पहले भी प्रचलित थी, परंतु महाभारत की मुख्य कथावस्तु ने इस आदर्श को और सुदृढ़ किया | पितृवंशिकता का अनुसार पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उसके संसाधनों पर अधिकार जमा सकते थे | राजाओं के संदर्भ में राजसिंहासन भी शामिल था |
प्रश्न – सभी परिवार किस प्रकार एक जैसे नही होते ? प्राचीन समय में हुए उनके वैविध्य के प्रकार स्पष्ट कीजिये |
उत्तर – इसमें कोई भी संदेह नही है की सभी परिवार एक जैसे नहीं होते | सदस्यों की संख्या के आधार पर कुछ छोटे होते है, तो कुछ बड़े होते है | सदस्यों के बीच रिश्तों तथा अन्य गतिविधियों के आधार पर भी परिवारों में भिन्नता पाई जाती है | एक ही परिवार के सदस्य अपने संसाधनों का उपभोग मिल -बाँट कर करते है |
और एक साथ मिलकर अपने तीज –त्योहार मनाते है | वे अपने रीती -रिवाजों का मिल -जुल कर करते है |
पारिवारिक संबंध प्रायः प्राकृतिक तथा रक्त आधारिक माने जाते है | फी भी इनकी परिभाषा अलग – अलग समाजो में अलग – अलग तरीके से की जाती है | उदाहरण के लिए कुछ समाजो में चचरे तथा मौसेरे भाई -बहनों के साथ खून का रिश्ता मन जाता है परंतु कुछ समाज ऐसा नहीं मानते |
प्रश्न – महाभारत की मूल कथा को मौखिक रूप से किसने संकलित किया ? इतिहासकारों ने महाभारत का विश्लेषण करते हुए जिन पहलुओ पर विचार किया है, उनमे से किन्ही चार की व्याख्या कीजिये |
उत्तर – महाभारत की मूल कथा के मौखिक रचियता संभवतः भाट सारथी थे जिन्हें सूत कहा जाता था | वे लोग क्षत्रिय योद्धाओं के साथ युद्ध -क्षेत्र में जाते थे और इनकी विजयों तथा वीरतापूर्ण कारनामों के बारे में कविताएँ लिखते थे | इन रचनाओ का प्रवाह मौखिक रूप से होता रहा |
इतिहासकारों द्वारा विश्लेषण – इतिहासकारों ने महाभारत का विश्लेषण करते हुए निम्नलिखित चार पहलुओं पर विचार किया –
(1) ग्रन्थ की भाषा आम बोलचाल की भाषा थी अथवा किसी विशेष वर्ग की भाषा|
(2) ग्रन्थ किस प्रकार का है – मंत्रो के रूप में अथवा कथा के रूप में, जिसे आम लोगो द्वारा पढ़ा अथवा सुना जाता था ?
(3) ग्रन्थ का लेखक कोण था और उसने किस दृष्टिकोण से इसे लिखा होगा ?
(4) ग्रन्थ किसके लिए लिखा गया होगा ?
प्रश्न – ब्राह्मणीय ग्रंथो के अनुसार वर्ण –व्यवस्था तथा जीविका (व्यवसाय ) में क्या संबंध है ? ब्राह्मणों ने इसे लागू करने के लिए क्या तरीके अपनाये ?
उत्तर – ब्राह्मण ग्रंथो के अनुसार वर्ण –व्यवस्था तथा व्यवसाय के बीच संबंध –
1. ब्राह्मण – वेदों का पठन –पाठन, यज्ञ करना –करवाना तथा दान लेना –देना |
2. क्षत्रिय – युद्ध करना, लोगो की सुरक्षा करना, न्याय करना, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान –दक्षिणा देना |
3. वैश्य – वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना और दान –दक्षिणा देना और कृषि व्यापार एवं गौ – पालन करना |
4. शुद्र – अन्य तीन वर्णों की सेवा करना |
ब्राह्मणों ने इस व्यवस्था को लागू करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाये –
1. वर्ण –व्यवस्था की उत्पति को दैवीय –वयवस्था बताना |
2. शासको द्वारा इस व्यवस्था को लागू करवाना |
3. लोगो को यह विश्वास दिलाना कि उनकी प्रतिष्ठा जन्म पर आधारित है |
प्रश्न – जाति पर आधारित सामाजिक वर्गीकरण क्या था ? श्रेणियाँ क्या थी ?
उत्तर – समाज में वर्गीकरण शास्त्रों में प्रयुक्त शब्द जाती के आधार पर भी किया गया था | ब्राह्मणीय सिद्धांत में वर्ण की तरह जाति भी जन्म पर आधारित थी परंतु वर्णों की संख्या जहा मात्र चार थी, वहीँ जातियों की कोई निश्चित संख्या नही थी | ऐसे भी नए समुदाय को जिन्हें चार वर्णों वाली ब्राह्मणीय वयवस्था में शामिल करना संभव नहीं था, जाति में वर्गीकरण कर दिया गया | एक ही जीविका अथवा व्यवसाय से जुड़ी जातियों को कभी –कभी श्रेणियों में भी संगठित किया जाता था | श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी | कुछ सदस्य अन्य व्यवसाय भी अपना लेते थे | उदहारण के लिए रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी ने अपने काम से सामूहिक र्पू से अर्जित धन को सूर्य देवता के सम्मान में मंदिर बनवाने पर खर्च किया |
प्रश्न – ब्राह्मणीय विचारों से उन्मुक्त समुदाय की समाज में क्या स्थित थी ?
अथवा
ऐसे समुदाय का उल्लेख कीजिये जो चार वर्णों से परे थे और जिन्हें शंका की दृष्टि से देखा जाता था |
उत्तर – उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली विविधताओं के कारण यहाँ हमेशा से ऐसे समुदय रहे है जिन पर ब्राह्मणीय विचारों का कोई प्रभाव नही पड़ा है | इसलिय संस्कृत साहित्य में जब ऐसे समुदाय का उलेख आता है तो उन्हें प्रायः विचित्र, असभ्य और पशुवत बताया जाता है | ऐसे कुछ उदहारण वनों में रहने वाले लोगो के है जिनके लिए शिकार और कंद –मूल इक्टठा करना जीवन निर्वाह का महत्वपूर्ण साधन था | निषाद (शिकारी) वर्ग इसका कारण है |कभी –कभी उन लोगो की जो असंस्कृत भाषी थे, उन्हें मलेच्छ कहकर हिन दृष्टि से देखा जाता था परंतु इन लोगो के बीच विचारों और मतों का आदान –प्रदान होता रहता था उनके संबंधो के स्वरुप के बारे में हमें महाभारत की कुछ कथाओं से जानकारी मिलती है |
प्रश्न – वर्ण और संपति के अधिकार में क्या सम्बन्ध था ?
उत्तर - ब्राह्मणीय ग्रंथो के अनुसार लैंगिक आधार के अतरिक्त संपति पर अधिकार का एक अन्य आधार वर्ण था | शुद्रो के लिए एकमात्र ‘जीविका’ अन्य तीन वर्णों की सेवा थी परन्तु पहले तीन वर्णों के पुरूषों के लिए विभिन्न जिविकाओं की संभावना रहती थी | यदि इन सभी विधानों को वास्तव में कर्यांवानित किया जाता हो तो ब्राहमण और क्षत्रिय सबसे अधिक धनी व्यक्ति होते | यह तथ्य कुछ सीमा तक सामाजिक वास्तविकता से भी मेल खाता था | उदहारण के लिए साहित्यक परंपरा में जिन पुरोहितों और राजाओं का वर्णन मिलता है उनमें राजाओं को बहुत अधिक धनी बताया गया है | पुरोहित अथवा ब्राहमण भी कुचकाम धनी नहीं थे परंतु कही –कही निर्धन ब्राहमणों का भी उल्लेख मिलता है |
प्रश्न – वर्ण व्यवस्था की आलोचानाओ के क्या आधार थे ?
उत्तर – जिस समय समाज के ब्राह्मणीय दृष्टिकोण को धर्मशुत्रो औए धर्मशास्त्रों में संहिताबद्ध किया जा रहा था | उस समय कुछ अन्य परम्पराओं ने वर्ण –व्यवस्था की आलोचना भी प्रस्तुत की | इनमे से सबसे महत्वपूर्ण आलोचनाये प्रारंम्भिक बोध धर्म में विकसित हुई | उन्होंने जन्म के आधार पर सामाजिक प्रतिष्ठा को भी अस्वीकार कार दिया |
प्रश्न- संपति में भागीदारी से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर – समाज में कुछ सम्पत्तिवान लोग प्रतिष्ठा का पात्र मने जाते थे परन्तु हमेशा ऐसा नहीं था | समाज में कुछ अन्य संभावनाएं भी थी | उदहारण के लिए समाज में दानशील आदमी का सम्मान किया जाता था, जबकि कृपण (कंजूस ) व्यक्ति अथवा वह व्यक्ति जो केवल अपने लिए संम्पति का संग्रह करता था ; घृणा का पात्र होता था | इस क्षेत्र में 2000 वर्ष पहले अनेक सरदारियाँ थी | तमिल भाषा के संगम साहित्य संग्रह में सामाजिक और आर्थिक संबधो का अच्छा चित्रण है | यह संकेत करता है कि भले ही धनी और निर्धन के बीच विषमतायें थी, फिर भी धनी लोगो से यह अपक्षा थी कि वे पाने संसाधनों का उपयोग मिल-बाँटकर करेंगे |
प्रश्न – साहित्यिक परम्पराओं का अध्यन करते समय इतिहासकारों को कौन –कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए ? व्यख्या कीजिये |
उत्तर - साहित्यिक परम्पराओं का अध्यन करते समय इतिहासकारों को निमंलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –
ग्रंथो की भाषा क्या है ? यह आम लोगो की भाषा थी ; जैसे – पाली, प्राकृत, तमिल आदि अथवा पुरोहित या किसी विशेष वर्ग की भाषा थी, जैसे – संस्कृत |
1. ग्रंथ किस प्रकार का है – मंत्रों के रूप में अथवा कथा के रूप में ?
2. ग्रंथ के लेखक की जानकारी प्राप्त करना जिसके दृष्टिकोण तथा विचारों से वह ग्रंथ लिखा गया था |
3. ग्रंथ किनके लिए रचा गया था, क्योंकि लेखक ने उनकी अभिरुचि का ध्यान रखा होगा |
4. ग्रंथ के संभावित संकलन की जानकारी प्राप्त करना और उसकी रचना की पृष्ठभूमि की रचना करना |
5. ग्रंथ की रचना का स्थान |
प्रश्न – इतिहासकारों ने महाभारत की भाषा तथा विषय –वस्तु का वर्गीकरण किस आधार पर किया ? स्पष्ट कीजिये |
उत्तर – भाषा – महाभारत नमक महाकाव्य कई भाषओं में मिलता है परन्तु इसकी मूल भाषा संस्कृत है | इस ग्रन्थ में प्रयुक्त संस्कृत वेदों अथवा प्रशस्तियो की संसकिरत से कई अधिक सरल है | अतः यह कहा जा सकता है की इस ग्रन्थ को व्यापक स्तर पर समझा जाट होगा |
विषय –वस्तु – इतिहासकार महाभारत की विषय वस्तु को दो मुख्य शीर्षकों के अधीन रखते थे – आख्यान तथा उपदेशात्मक | परन्तु यह बिभाजन अपने आप में पूरी तरह स्पष्ट नहीं है क्योंकि उपदेशात्मक अंशो में भी कहानियाँ होती है | इस प्रकार आख्यानों में समाज के लिए एक सन्देश निहित होता है | जो भी हो, अधिकतर इतिहासकार इस बात पर एक मत है कि मूल रूप से महाभारत नाटकीय कथानक था जिसमे उपदेशात्मक अंश बाद में जोड़े गए |
प्रश्न – महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ है | संक्षिप्त व्याख्या कीजिये |
उत्तर – महाभारत एक गतिशील ग्रन्थ रहा है | इसका विकास संस्कृत के विकास के साथ ही समाप्त नहीं हो गया, बल्कि शताब्दियों से इस मह्काव्यो के अनेक रूपांतरण भिन्न –भिन्न भाषओं में लिखे जाते रहे | यह सब उन संवाद को दर्शाते थे जो इनके लेखको, अन्य लोगो और समुदाय के बीच हुए | अनेक कहानियाँ जिनका उद्दभव एक क्षेत्र विशेष में हुआ और जिनका विशेष लोगो के बीच प्रसार हुआ, वे सब इस महाकाव्य में शामिल कर ली गयी | साथ ही इस महाकाव्य की मुख्य कथा की अनेक पुन व्याख्या की गई | इसके प्रसंगों और मूर्तियों और चित्रों में भी दर्शाया गया | इस महाकाव्यों ने नाटकों और नृत्य कलाओं के लिए भी विषय वस्तु प्रदान की |