राजा, किसान और नगर
प्रश्न – ईसा पूर्व छठी शताब्दी से होने वाले परिवर्तनों तथा उनकी जानकारी के स्त्रोतों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये |
उत्तर - ईसा पूर्व छठी शताब्दी से कई नए परिवर्तनों के प्रमाण मिलते है |
(1) इनमे सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन आरंभिक राज्यों, साम्राज्यों और रजवाड़ों का विकास है | इन राजनीतिक प्रक्रियाओं के लिए कुछ अन्य परिवर्तन उत्तरदायी थे |इनका पता कृषि उपज को संगठित करने के तरीको से पता चलता है |
(2) इसी के साथ साथ लगभग पूरे उपमहाद्वीप में नए नगरों का भी उदय हुआ |
इतिहासकार इस प्रकार के३ विकास को जानने के लिए अभिलेखों, ग्रंथों,सिक्कों,तथा चित्रों आदि विभिन्न प्रकार के स्त्रोतों का अध्ययन करते है |
प्रश्न - जेम्स प्रिंसेप के शोधकार्य से आरंभिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को किस प्रकार एक नई दिशा मिली ?
उत्तर – भारतीय अभिलेख के शोधकार्य विज्ञान में 1830 के दशक में एक उल्लेखनिये प्रगति हुई | इस कार्य में एक ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप का महतवपूर्ण योगदान रहा जिसने ब्राहमी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला | इन लिपियों का प्रयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है | जेम्स प्रिंसेप को पता चला की अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी अर्थात मनोहर मुखाकृति वाले रजा का नाम लिखा है | बौद्ध ग्रथों के अनुसार अशोक सर्वाधिक लोकप्रिय शासकों में से एक था |
परिणामस्वरूप बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास का एक सामान्य विवरण तैयार हो गया |
प्रश्न – ईसा पूर्व छठी शताब्दी में विद्येमान गण संघर्षो का वर्णन करें |
उत्तर - ईसा पूर्व छठी शताब्दी में कुछ ऐसे राज्य थे जिन्हें गणसंघ अथवा गणराज्य कहा जा सकता है |उस समय कुछ महत्वपूर्ण गणराज्य निम्नलिखित थे-
(1) कुशिनारा के मल्ल (2) पावा के मल्ल
(3) कपिलवस्तु के शाक्य (4) रामग्राम के कोलिय
(5) पिप्पलिवन के मोरिय (6) अल्कप्प के बुलि
(7) केसपुत्त के कलाम (8) सुमसुमारगिरी के भम्ग
(9)वैशाली के लिच्छवी |
छठी शताब्दी ई॰ पू॰ का सबसे महत्वपूर्ण गणराज्य वजिजियों का था | उनका राज्य गंगा के उत्तरी भाग में फैला हुआ था | यह राज्य आठ गणों का का एक संघ था जिनमें से लिच्छवी गण बहुत ही महत्वपूर्ण था | चेतक के अधीन लिच्छवी बहुत ही शक्तिशाली हो गए थे परंतु मगध के शासक अजातशत्रु ने उन्हें पराजित कर दिया और उनके राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया |
प्रश्न - मगध राज्य की उत्थान की कहानी को अपने शब्दों में लिखो |
उत्तर – मगध में आधुनिक घटना और शाहबाद के कुछ भाग सम्मिलित थे | बिंबिसार के शासनकाल में इस राज्य ने खूब उन्नति की | उसने वैवाहिक संबंधो द्वारा अपनी स्थिति मजबूत की और पश्चिमी की ओर विस्तार के लिए रास्ता तैयार किया | उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसकी हत्या करके स्वयं शासन संभाला | अजातशत्रु के बाद उदयिन का शासनकाल आया | उसने कौशल के राजा को हराया | उसके बाद शिशुनाग वंश का शासन आरंभ हुआ | इस वंश के राजाओं ने अवंती को पराजित किया | शिशुवंश के पश्चात नन्द वंश का प्रारंभ हुआ | उन्होंने कलिंग को जीत कर मगध की शक्ति को बढाया | सिकंदर के आक्रमण के समय वहां महापदमनंदका शासन था | उसके शक्ति से सिकंदर के सैनिक भी भयभीत हो उठे थे | नन्द वंश के पश्चात मगध में मौर्य वंश की स्थापना हुई | इस वंश के राजाओं ने मगध के प्रतिष्ठा को चरम- सीमा पर पहुँचा दिया|
प्रश्न – बताएँ की ईसा पूर्व छठी सदी में भारत की राजनीतिक स्थिति कैसी थी ? प्राचीन भारत के इतिहास में भी महाजनपदों के उदय के महत्व का वर्णन करें |
उत्तर - ईसा पूर्व छठी शताब्दी में देश में बड़े -बड़े राज्यों की स्थापना हुई जिन्हें महाजनपद कहते है | इनमे से अधिकतर राज्य विध्यांचल पर्वत के उत्तर में स्थित थे और उनका विस्तार क्षेत्र उत्तर –पश्चिमी सीमांत से लेकर बिहार तक था | मगध, कौसल, वत्स और अवन्ती बड़े शक्तिशाली राज्य थे | सबसे पूर्व की ओर ‘अंग’ जनपद था जिसे पड़ोस के मगध राज्य ने जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था | मगध अपने समय का सबसे प्रमुख राज्य था | इन राज्यों में सदा आपसी संघर्ष होता रहता था | मगध ने प्रमुखता प्राप्त की और उसे एक साम्राज्य स्थापित करने में सफलता मिली |
प्रश्न – मौर्यकालीन इतिहास की रचना करने वाले किन्ही चार स्त्रोतों को स्पष्ट कीजिये |
अथवा
“मौर्य साम्राज्य के इतिहास की रचना के लिए इतिहासकारों ने विभिन्न प्रकार के स्त्रोतों का उपयोग किया है|” स्पष्ट कीजिये |
अथवा
इतिहासकारों ने मौर्य साम्राज्य के इतिहास की पुनर्रचना के लिए विभिन्न प्रकार के स्त्रोतों का उपयोग किया है | ऐसे किन्हीं चार स्त्रोतों का उल्लेख कीजिये |
उत्तर – (1)मौर्येकाल की जानकारी देने वाले स्त्रोतों में मेग्स्थिनिज की ‘इंडिका’ महतवपूर्ण है | इस पुस्तक में मौर्यों की शासन प्रणाली तथा तत्कालीन समाज का बड़ा सुन्दर वर्णन है |
(2) कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में भी हमें मौर्येकाल की शासन प्रणाली की काफी जानकारी मिलती है
(3) विशाखदत्त के मुद्राराक्षस से इस बात का पता चलता है की चन्द्रगुप्त ने नंद वंश से किस प्रकार राज्य प्राप्त किया |
(4) जैन तथा बौद्ध धर्म के ग्रन्थ भी मौर्य राजाओं के जीवन तथा धार्मिक विचारों पर प्रकाश डालते है |
(5) अशोक के अभिलेखों से मौर्येकाल का इतित्हस जानने में सबसे अधिक सहायता मिलती है | यह हमें अशोक के धर्म तथा प्रजा- हितैषी कार्यों की विशेष जानकारी देते है |
प्रश्न – गुप्त शासकों का इतिहास लिखने में सहायक स्त्रोतों का वर्णन कीजिये |
उत्तर – गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों तथा अभिलेखों की सहायता से लिखा गया | गुप्त काल के सिक्के बड़ी मात्र में पाए गए है | इनके अतरिक्त कवियों ने अपने रजा अथवा स्वामी की प्रशंसा में प्रशस्तियाँ लिखी थी जिनके आधारों पर इतिहासकारों ने ऐतिहासिक तथ्य निकालने का प्रयास किया है | उदहारण के लिए इलाहबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति समुद्रगुप्त के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है | इसे समुद्रगुप्त गुप्त के राजकवि हरिषेण ने लिखा था | इससे पता चलता है की वह संभवतः गुप्त सम्राटों में सबसे शक्तिशाली तथा गुण-संपन्न था |
प्रश्न – अर्थशास्त्र किया है ? भारतीय इतिहास में इसका क्या महत्व है ?
अथवा
कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर एक टिप्पणी लिखो |
उत्तर - कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति से संबंधित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है | इसकी रचना कौटिल्य ने की थी जो एक बहुत बड़ा विद्वान और चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था उसने इस ग्रन्थ के प्रशासन में सिंद्धांतो का वर्णन किया है | इस ग्रंथ का भारतीय इतिहास में बहुत महत्व था | यह ग्रंथ मौर्येकाल का सुंदर चित्र प्रस्तुत करता है | इससे हमें चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबंध तथा उसके चारित्रिक गुणों की जानकारी मिलती है | यह ग्रंथ मौर्येकाल के समाज पर भी प्रकाश डालता है | सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें दिए गए शासन के सिद्धांतों की झलक आज के भारतीय शासन में देखी जा सकती है |
प्रश्न – अशोक के किन्हीं चार शिलालेखों के नाम बताओ | यह भी बताओ कि ये कहाँ पर स्थित है ?
उत्तर - अशोक के शिलालेख निम्नलिखित स्थानों पर मिले है –
1. सिद्धपुर – यह स्थान मैसूर राज्य के चित्तल दुर्ग जिले में हैं |
2. ब्रह्मगीरी - यह स्थान भी मैसूर राज्य में है |
3. मास्की – यह स्थान हैदराबाद के निकट है |
4. सहसाराम – यह स्थान शाहाबाद ( बिहार ) में है |
प्रश्न – अशोक के शिलालेखों का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर – अशोक के शिलालेखों का इतिहास में बड़ा महत्त्व है | ये हमें अशोक के समय के मौर्य शासन की निम्नलिखित जानकारी देते हैं –
(1) उसके अधिकतर शिलालेख सीमांत क्षेत्रों में स्थित हैं | इनकी सहायता से हम अशोक के राज्य की सीमाएँ आसानी से निर्धारित कर सकते है |
(2) अशोक के शिलालेख हमें अशोक के निजी धर्म और उच्च चरित्र के विषय में जानकारी देते है |
(3) इनसे यह पता चलता है की अशोक के मिस्त्र, सीरिया, बर्मा और श्रीलंका के साथ बड़े आचे संबध थे |
(4) इनसे यह पता चलता है की बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए क्या साधन अपनाये |
(5) अशोक के शिलालेख मौर्यकालीन कला के सुंदर नमूने है |
प्रश्न – अशोक के अभिलेखों में मौर्यों का क्या वर्णन मिलता है ? अभिलेख साक्ष्यों की सीमाओं का वर्णन कीजिये |
उत्तर – अशोक के अभिलेख मुख्य रूप से सम्राट अशोक के काल से जुड़े मौर्य इतिहास पर प्रकाश डालते है | यह हमें उस समय के राज्य विस्तार, प्रशासन, प्रशासनिक अधिकारी, जन -कल्याण कार्य, मौर्यों की मूर्तिकला आदि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते है | अभिलेखों से हमें यह पता चलता है की अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद इस धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए क्या -क्या पग उठाये |
प्रश्न – अशोक का इतिहास में क्या स्थान है ?
उत्तर – अशोक की गणना केवल भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के महान सम्राटों में की जाती है | इसके अनेक कारण है –
1. कलिंगयुद्ध के बाद अशोक ने यह ठाना की वह सिर्फ अब लोगो की सेवा में ही अपना सारा जीवन व्यतित कर देंगे | विश्व में किसी भी सम्राट ने ऐसा त्याग नही किया है|
2. अशोक अपनी प्रजा को अपनी संतान के समान समझते थे | राज्य की ओर से विधवाओं तथा अनाथों को विशेष सुविधाएँ प्राप्त थी |
3. अशोक के एक सहनशील सम्राट था | वह सभी धर्मो का आदर करता था |
4. अशोक पहला शासक था जिसने पशुओं के लिए भी अस्पताल खुलवाए |
प्रश्न – मौर्य साम्राज्य को इतिहास का एक प्रमुख काल क्यों माना गया है ? संक्षेप में वर्णन कीजिये |
उत्तर – उन्नीसवीं सदी में जब इतिहाकारों ने भारत के आरंभिक इतिथास की रचना करनी आरम्भ की तो मौर्य साम्राज्य को इतिहास का एक प्रमुख काल मन गया | उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन एक औपनिवेशिक देश था | उन्नीसवी तथा आरंभिक बीसवी सदी के भारतीय इतिहासकारों को प्राचीन भारत में एक ऐसे साम्राज्य की संभावना, बहुत ही चुनौतीपूर्ण लगी | साथ ही पत्थरों की मूर्तियों सहित मौर्येकाल के सभी पुरातत्व एक अद्दभुत कला के प्रमाण थे जो साम्राज्य की पहचान मने जाते थे | इतिहासकारों को लगा की अभिलेखों पर लिखे सन्देश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न है | उन्होंने महसूस किया कि अन्य राजाओं की अपेक्षा अशोक एक बहुत शक्तिशाली और परिश्रमी शासक था | इसलिए इसमें अस्चार्ये की कोई बात नहीं थी कि बीसवी सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने भी अशोक को भी प्रेरणा का स्त्रोत माना |
प्रश्न - मौर्येकाल में कारीगरों तथा शिल्पकारों की स्थिति कैसे थी ? समाज में उनके महत्व के क्या कारण थे ?
उत्तर – किसानो की तरह मौर्येकाल में कारीगरों तथा शिल्पियों की स्थिति भी बहुत महत्वपूर्ण थी | मेगस्थनीज ने जल्द की सामाजिक वर्गीकरण में इन्हें चौथा स्थान दिया | व्यापार की उन्नति के कारण शिल्पियों तथा कारीगरों की संख्या काफी बढ़ गयी थी | प्रत्येक श्रेणी के शिल्पकारों ने अपना संगठन भी बना लिया था | प्रत्येक संगठन का नेता भी होता था | शिल्पकारों के प्रत्येक लोगो का अपना एक काम होता था यदि एक श्रेणी के कारीगर खेती -बाड़ी के यंत्र बनाते थे तो दूसरी श्रेणी के शिल्पकार घरेलु समान बनाते थे | इसी प्रकार जैसे मूर्तिकार, बुनकरों, कुम्हारों, लुहारों तथा हठी दांत का काम करने वालो की अपनी –अपनी अलग श्रेणियाँ होती थी |
प्रश्न – मेगस्थनीज के विवरण से मौर्य साम्राज्य के महान अधिकारियों के कार्यो के बारे में किया पता चलता है ?
उत्तर – मेगस्थनीज के विवरण में मौर्य साम्राज्य के महान अधिकारियों के कार्यो के बारे में निम्नलिखित बातें बताई गयी है –
1. कुछ अधिकारी नदियों की देख –रेख और भूमि मापन का काम करते थे |
2. कुछ प्रमुख नहरों से उपनगरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरिक्षण करते थे ताकि सभी स्थानों पर पानी की समान पूर्ति की जा सके |यही अधिकारी शिकारियों पर भी नजर रखते थे |
3. अधिकारीगण कर वसूली करते थे और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरिक्षण करते थे | साथ ही वे लकड़हारों, बढई, लोहारों का भी निरिक्षण करते थे|
प्रश्न - खेती की नई तकनीको से जुड़े लोगो की सामाजिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – खेती की नई तकनीक से फसल तोह हुए परंतु इससे खेती से जुड़े लोगो में दूरियां होने लगी | बौद्ध धर्म में छोटे किसानो तथा बड़े –बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है | बड़े –बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे | वे किसानों पर नियंत्रण रखते थे | ग्राम प्रधान का पद बड़ा होता था | संभव है की इस वर्ग विभेद का आधार भूमि का स्वामित्व, श्रम तथा नई प्रोधोगिकीय का उपयोग रहा हो | ऐसे परिस्थिति में भूमि का स्वामित्व महत्वपूर्ण हो गया था |
प्रश्न - अभिलेखों में भूमिदानों के बारे में क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर – इसवी की आरंम्भिक शताब्दियों से भूमि दान के प्रमाण मिलते है | इनमे से कई भु -दानों का उल्लेख अभिलेखों में मिलता है | कुछ अभिलेख पत्थरों पर खुदे हुए थे | इन्हें संभवतः भूमिदान पाने वाले लोगो को प्रमाण के रूप में दिया जाता था | भूमिदान के जो प्रमाण मिले है, वे दान प्राय धार्मिक संथाओं या ब्राह्मणों को दिए है | अधिकांश अभिलेख संस्कृत में थे |
भूमिदान के प्रचलन से राज्य तथा किसानो के बीच संबंध की भी झलक मिलती है परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे जिन पर अधिकारियो का नियंत्रण नहीं था | इनमे पशुपालक, शिकारी, शिल्पकारी, और जगह –जगह घूमकर खेती करने वाले लोग शामिल थे |
प्रश्न – अशोककालीन, ब्राह्मी लिपि का अर्थ कैसे निकला गया ?
उत्तर – आधुनिक भारतीय भाषाओ में प्रयोग होने वाली लगभग सभी लिपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है | ब्राह्मी लिपि का प्रयोक अशोक के अभिलेखों में किया गया | 18वीं शताब्दी के अंत से यूरोपीय विद्वानों ने भारतीय पंडितो की सहायता से आधुनिक बंगाली और देवनागिरी लिपि में कई पाण्डुलिपियों का अध्यन शुरू किया और उनके अक्षरों की तुलना प्राचीन अक्षरों के नमूनों से की |
आरंभिक अभिलेखों का अध्यन करने वाले विद्वानों ने कई बार यह समझा कि यह अभिलेख संस्कृत में लिखे है, जबकि प्राचीनतम अभिलेख वास्तव में प्राकृत में थे | फिर कई दशकों बाद अभिलेख वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम के बाद 1838 ई॰ में जेम्स प्रिंसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का अर्थ निकाल लिया |
प्रश्न – छठी शताब्दी इ॰ पू॰ से उपमहाद्वीप के बाहर के व्यापार की जानकारी दीजिये |
अथवा
छठी शताब्दी इ॰ पू॰ से छठी शताब्दी इसवी तक व्यापार वयवस्था की वेख्या कीजिये |
उत्तर – व्यापार मार्ग – उपमहाद्वीप में छठी शताब्दी इ॰ पू॰ से ही व्यापार के लिए नदी मार्गो और भू –भागों का जाल सा बिछ गया था | यह कई दिशाओ में फैला हुआ था | जलमार्ग समुद्र –तट पर स्थित कई बन्दरगाहों से अरब सागर होते हुए उत्तरी अफ्रीका तथा पश्चिमी एशिया तक फ़ैल गया था | बंगाल की खाड़ी से यह मार्ग चीन और दक्षिणी पूर्व ऐशिया तक फैला हुआ था | इसलिए वे प्रायः इन मार्गों पर अपना नियंत्रण करने के प्रयास में रहते थे |
विभिन्न व्यापारी – इन मार्गों पर चलने वाले व्यापरियों में पैदल फैरी लगाने वाले तथा बैलगाड़ी और घोड़ों के दाल के साथ चलन्र वाले व्यापारी शामिल थे | वे समुद्री मार्ग से भी यात्रा करते थे | यह यात्रा खतरनाक तो थी, परंतु बहुत हि८ लाभदायक होती थी |
आयात –निर्यात – नमक, अनाज, कपड़ा, धातु और उसमे निर्मित उत्पाद, पत्थर, लकड़ी, जड़ी –बूटियों आदि अनेक प्रकार के पदार्थ एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाये जाते थे | इन सभी वस्तुओ को अरब सागर के मार्ग से भूमध्य क्षेत्र तक पहुँचाया जाता था |