अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
Q1. भारतीय संविधान में किस प्रकार से संशोधन किया जा सकता है ?
उत्तर : भारतीय संविधान में तीन तरीकों से संशोधन किया जा सकता हैः-
(i) संसद में सामान्य बहुमत के आधार पर।
(ii) संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत के आधार पर।
(iii) संसद के दोनों सदनों में अलग-2 विशेष बहुमत के साथ-साथ कुल राज्यों की आधी विधायिकाओं के अनुसमर्थन के आधार पर।
Q2.भारतीय संविधान में अब तक किये गए संशोधनों को कितने भागों में बांटा जा सकता है |
उत्तर : भारतीय संविधान में अब तक किये गये संशोधनों को निम्न भागों में बाँटा जा सकता हैः-
(i) तकनीकी या प्रशासनिक।
(ii) संविधान की व्याख्याएं।
(iii) राजनीतिक आम सहमति के माध्यम से संशोधन
Q3. भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : भारतीय संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत- यह सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में 1973 में दिया था। इसके अनुसार संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है। लेकिन वह संविधान की आधारभूत संरचना में बदलाव नहीं कर सकती ।
Q4.प्रजातंत्र का अर्थ बताइए ?
उत्तर : प्रजातंत्र का अर्थ है जनताओं का शासन से है और यह विकासशील संस्थाओं से है और इनके माध्यम से ही वह कार्य करता है। सभी राजनीतिक संस्थाओं को लोगों के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए और दोनों को एक दूसरे के साथ मिलकर चलना चाहिए।
Q5. संविधान को एक जीवंत दस्तावेश माना है। इसका क्या अर्थ है|
या
भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है कैसे |
उत्तर : भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है लगभग एक जीवित प्राणी की तरह यह दस्तावेश समय-समय पर पैदा होने वाली परिस्थितियों के अनुरूप कार्य करता है। जीवंत प्राणी की तरह ही यह अनुभव से सीखता है। समाज में इतने सारे परिवर्तन होने के बाद भी हमारा संविधान अपनी गतिशीलता, व्याख्याओं के खुलेपन और बदलती परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तनशीलता की विशेषताओं के कारण प्रभावशाली रूप से कार्य कर रहा है। यही लोकतांत्रिक संविधान का असली मानदंड है।
Q 6. भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों होती है? अथवा भारतीय संविधान में विशेष बहुमत का क्या अर्थ होता है?समझाइए|
उत्तर :विधायिका में किसी प्रस्ताव या विधेयक को पारित करने के लिए सदन में उपस्थित सदस्यों के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है। ये सभी सदस्य एक विधेयक पर मतदान करते हैं। अगर इन सदस्यों में से कम से कम 124 सदस्य विधेयक के पक्ष में मतदान करते हैं तो इस विधेयक को पारित माना जाता है । लेकिन संशोधन विधेयक पर यह बात लागू नहीं होती।
संविधान में संशोधन करने के लिए दो प्रकार के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
- पहले, संशोधन विधेयक के पक्ष में मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या सदन के कुल सदस्यों की संख्या की कम से कम आधी होनी चाहिए।
- दूसरे, संशोधन का समर्थन करने वाले सदस्यों की संख्या मतदान में भाग लेने वाले सभी सदस्यों की दो तिहाई होनी चाहिए। संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों में स्वतंत्र रूप से पारित करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान नहीं है।
कोई भी संशोधन विधेयक विशेष बहुमत के बिना पारित नहीं किया जा सकता।लोकसभा में 545 सदस्य होते हैं। अतः किसी भी संशोधन विधेयक का समर्थन करने के लिए 273 सदस्यों की आवश्यकता होती है। अगर मतदान के समय 300 सदस्य मौजूद हों तो विधेयक पारित करने के लिए 273 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
Q7.विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं में कौन से सिद्धांत ज्यादा अहम् भूमिका अदा करते हैं?
उत्तर : विश्व के आधुनिकतम संविधानों में संशोधन की विभिन्न प्रक्रियाओं में दो सिद्धांत ज्यादा अहम् भूमिका अदा करते हैं।
(1)एक सिद्धांत है विशेष बहुमत का। उदाहरण के लिए, अमेरिका, दक्षिण अप्रफीका,रूस आदि के संविधानों में इस सिद्धांत का समावेश किया गया है। अमेरिका में दो तिहाई बहुमत का सिद्धांत लागू है, जबकि दक्षिण अप्रफीका और रूस जैसे देशों में तीन चौथाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
(2) दूसरा सिद्धांत है संशोधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी का। यह सिद्धांत कई आधुनिक संविधानों में अपनाया गया है। स्विट्जरलैंड में तो जनता को संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने तक का अधिकार है। रूस और इटली अन्य ऐसे देश हैं जहाँ जनता को संविधान में संशोधन करने या संशोधन के अनुमोदन का अधिकार दिया गया है।
Q8. संघीय संरचना का अर्थ क्या है ?
उत्तर : संघीय संरचना का अर्थ यह है कि राज्यों की शक्तियाँ केंद्र सरकार की दया पर निर्भर नहीं करतीं। संविधान में राज्यों की शक्तियों को सुनिश्चित करने के लिए यह व्यवस्था की गई है कि जब तक आधे राज्यों की विधानपालिकाएँ किसी संशोधन विधेयक को पारित नहीं कर देतीं तब तक वह संशोधन प्रभावी नहीं माना जा सकता है । संघीय संरचना से संबंधित प्रावधानों के अलावा मौलिक अधिकारों के प्रावधानों को भी इसी प्रकार सुरक्षित बनाया गया है।
Q9. भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए व्यापक बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है।समझाइए |
उत्तर : भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए व्यापक बहुमत की आवश्यकता इसलिए पड़ती है। क्योंकि इस प्रक्रिया में राज्यों को सीमित भूमिका दी गई है। हमारे संविधान निर्माता इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को इतना आसान नहीं बना दिया जाना चाहिए कि उसके साथ जब चाहे छेड़खानी की जा सके। लेकिन साथ ही उन्होंने इस बात का ख्याल भी रखा कि भावी पीढि़याँ अपने समय की जरूरतों के हिसाब से इसमें आवश्यक संशोधन कर सके।
Q10. निम्नलिखित शब्दों पर टिप्पणी कीजिए |
(i) तकनीकी भाषा में संशोधन या प्रशासनिक |
(ii) संविधान की व्याख्याएं।
(iii) राजनीतिक में आम सहमति के माध्यम से संशोधन |
(iv) विवादास्पद संशोधन |
उत्तर :
(i) तकनीकी भाषा में संशोधन या प्रशासनिक = भारतीय संविधान के पहली श्रेणी में तकनीकी भाषा में संशोधन या प्रशासनिक संशोंधन है जो प्रकृति के हैं और ये संविधान के मूल उपबंधों को स्पष्ट बनाने, उनकी व्याख्या करने तथा छिट-पुट संशोधन से संबधित हैं। उन्हें केवल सिर्फ तकनीकी भाषा में संशोधन कहा जा सकता है। वास्तव में वे इन उपबंधों में कोई विशेष बदलाव नहीं करते है ।
उदाहण के लिए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृति की आयु सीमा का 60 वर्ष से बढाकर 62 वर्ष (15वाँ संशोधन) करना और इसी प्रकार,सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाने संबंधी संशोधन (55वाँ संशोधन) है | तथा विधायिकाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण संबंधी संशोंधन हैं। जो मूल उपबंध में आरक्षण की बात दस वर्ष की अवधि के लिए कही गई थी। परन्तु इन वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए इस अवधि को प्रत्येक दस वर्षों की समाप्ति पर एक संशोधन द्वारा आगामी दस वर्षों के लिए बढ़ाना आवश्यक समझा गया |
(ii) संविधान की व्याख्याएं = संविधान की व्याख्या को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच अकसर मतभेद पैदा होते रहे हैं। संविधान के अनेक संशोधन इन्हीं मतभेदों
की उपज के रूप में देखे जा सकते हैं। इस तरह के टकराव पैदा होने पर संसद को संशोधन का सहारा लेकर संविधान की किसी एक व्याख्या को प्रामाणिक सिद्ध करना पड़ता है। प्रजातंत्र में विभिन्न संस्थाएँ संविधान और अपनी शक्तियों की अपने-अपने तरीके से व्याख्या करती हैं। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक अहम लक्षण है। कई बार संसद इन न्यायिक व्याख्याओं से सहमत नहीं होती और उसे न्यायपालिका के नियमों को नियंत्रित करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है। 1970 से 1975 के दौरान ऐसी अनेक परिस्थितियाँ पैदा हुईं।
उदाहरण के लिए, मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतो को लेकर संसद और न्यायपालिका के बीच अकसर मतभेद पैदा होते रहे हैं। इसी प्रकार निजी संपत्ति के अधिकार के दायरे तथा संविधान में संशोधन के अधिकार की सीमा को लेकर भी दोनों के बीच विवाद उठते रहे हैं |
(iii) राजनीतिक में आम सहमति के माध्यम से संशोधन = में बहुत से संशोधन ऐसे हैं जिन्हें राजनीतिक दलों की आपसी सहमति का परिणाम माना जा जाता है। ये संशोधन तत्कालीन राजनीतिक दर्शन और समाज की आकांक्षाओं को समाहित करने के लिए किए गए थे। दल बदल विरोधी कानून(52वाँ तथा 91वाँ संशोधन) के अलावा इस काल में मताधिकार की आयु को 21 से 18 वर्ष करने के लिए संविधन में संशोंधन हुआ और 73वाँ और 74वाँ संशोधन किए गए थे। इस काल में नौकरियों में आरक्षण सीमा बढ़ाने और प्रवेश संबंधी नियमों को स्पष्ट करने के लिए भी संशोधन किए गए। सन् 1992-93 के बाद इन कदमों को लेकर देश में एक आम सहमति का माहौल पैदा हुआ और इन मुद्दों से संबंधित संशोधन पारित करने में कोई खास दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा।
(iv) विवादास्पद संशोधन = भारतीय संविधान में संशोधन करने के प्रश्न पर आज तक कोई विवाद उत्पन्न नहीं हुआ है। परन्तु अस्सी के दशक में इन संशोधनों को लेकर विधि और राजनीति के दायरों में भारी बहस छिड़ी थी। 1971-1976 केसमय में विपक्षी दल इन संशोधनों को संदेह की दृष्टि से देखते थे। उनका मानना था कि इन संशोधनों के माध्यम से सत्तारूढ़ दल संविधान के मूल स्वरूप को बिगाड़ना चाहते है। इस संबंध में, 38वाँ, 39वाँ और 42वाँ संशोधन विशेष रूप से विवादास्पद रहे हैं। जून 1975 में देश में आपात्काल की घोषणा की गई। ये तीन संशोधन इसी पृष्ठभूमि से निकले थे। इन संशोधनों का लक्ष्य संविधान के कई महत्त्वपूर्ण हिस्सों में बुनियादी परिवर्तन करना था।
Q11.भारतीय संविधान की मूल संरचना तथा उसके विकास वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान के विकास को जिस बात ने बहुत दूर तक प्रभावित किया है वह है संविधान की मूल संरचना का सिद्धांत। इस सिद्धांत को न्यायपालिका ने वेफशवानंद भारती के प्रसिद्ध मामले में प्रतिपादित किया था।
इस निर्णय ने संविधान के विकास में निम्नलिखित सहयोग दियाः
(i)इस निर्णय वेफ द्वारा संसद की संविधान में संशोधन करने की शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गईं।
(ii)यह संविधान के किसी या सभी भागों के संपूर्ण संशोधन (निर्धारित सीमाओं के अन्दर) की अनुमति देता है।
(iii)संविधान की मूल संरचना या उसके बुनियादी तत्व का उल्लंघन करने वाले किसी संशोधन के बारे में न्यायपालिका का फैसला अंतिम होगा - केशवानंद भारतीय मामले में यह बात स्पष्ट हो गई।