अध्याय-समीक्षा :
- द्वितिय विश्व युद्ध (1939-1945) की समाप्ति समकालीन विश्व राजनीति की शुरुआत थी।
- प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध (1914-18) (1939-45) के पश्चात वैश्विक घटनाओं के कारण कई बदलाव आऐ।
- द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका फ्रांस तथा सोवियत संघ को विजय मिली जिन्हें मित्र राष्ट्रों के नाम से जाना जाता है। धुरी राट्रों अर्थात जर्मनी, इटली तथा जापान को हार का सामना करना पड़ा।
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही शीत युद्ध की शुरूआत हुई।
- शीत युद्ध दो सहशक्तियों की बीच शत्रुपूर्ण वातावरण था। विचारों में मतभेदों के होते हुए भी विश्व को तीसरे विश्व युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा जिसका कारण था परमाणु बम का अविष्कार/दोनों सहशक्तियां इससे परिपूर्ण थी।
- क्यूबा का मिसाइल संकट शीत युद्ध की चरम सीमा था, जब 1962 में खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी थीं/दोनों गुटों के बीच खुद को बेहतर व शक्तिशाली दिखाने व बनाने के लिए कई ’’सैन्य-संधियां कीं।
- सैन्य संघि संगठन - अप्रैल 1949 मे नाटो (उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन) जिसका उद्देश्य अमेरिका द्वारा लोकतंत्र को बचाना।
- 1954 में सीटों (दक्षिण पूर्व एशियाई सन्धि संगठन) का उद्देश्य अमेरिका के नेतृत्व वाले साम्यवादी प्रसार को रोकना। 1955 में बगदाद पैक्ट, 1955 में वारसा संधि आदि। परिणामता विश्व खुले तौर पर अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर दो ध्रुवों में बैट चुका था।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दो बड़ी ताकतों के रूप में उभरे।
- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच मतभेद और अविश्वास की भावना बड़ गई और विश्व दोनों के नेतृत्व में दो गुटों पूंजीवादी गुट और साम्यवादी गुट में बंट गया।
- पूँजीवादी गुट ये संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, इटली, स्पेन, नार्वे डेनमार्क इत्यादि देश थे तथा साम्यवादी गुट में सोवियत संघ, पौलेंड क्यूबा, हंगरी, पूर्वी जर्मनी, रोमानिया तथा बुल्गारिया आदि देश थे।
- वे देश जो इन दोनों गुटों में शामिल नहीं हुए वे गुटनिरपेक्ष देश कहलाए जिनमें भारत, यूगोस्लाविया, मिस्त्र, घाना तथा इन्डोनेशिया इत्यादि देश शामिल थे।
- पूँजीवादी गुट (अमेरिका) और साम्यवादी गुट (सोवियत संघ) में महाशक्ति बनने के लिए होड़ लगी हुई थी लेकिन तीसरे विश्व युद्ध से बचने के लिए उत्तरदायित्व और संयम से दोनों ने काम लिया और आपस में विचारों का संघर्ष कायम रखा जिसे शीतयुद्ध का नाम दिया गया।
- क्यूबा अमेरिका से लगता हुआ एक छोटा सा द्वीप हैं 1962 में खु्रशचेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर, उसे एक सैनिक अड्डे के रूप में परिवर्तित कर दिया जिसे क्यूबा मिसाइल संकट के नाम से जाना जाता है।
- क्यूबा मिसाइल संकट, बर्लिन की घेराबंदी, कोरिया संकट तथा कांगो संकट शीतयुद्ध के दौर की प्रमुख घटनाऐं है।
- नाटो (NATO) सिएटो (SEATO) सेंटो (CENTO) पूंजीवादी गुट तथा वारसा संधि (WARSAW PACT) साम्यवादी गुट द्वारा की गई शीत युद्ध की प्रमुख सैन्य संधिंया थी।
- शीतयुद्ध के दौरान तनाव कम करने तथा आपसी विश्वास बढ़ाने के लिए अस्त्र नियंत्रण संबंधित अनेक संधिया की गई।
- शीतयुद्ध के दौरान तृतीय विश्व के ;एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमरीका के नव स्वतंत्र देशद्ध के देशों ने पूँजीवादी और साम्यवादी गुट में शामिल होने के बजाय गुटनिरपेक्ष की नीति को अपनाना उचित समझा।
- पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन 1961 में बेलग्रेड में हुआ जिसमें 25 सदस्य देशों ने भाग लिया।
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक - भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू, मिस्त्र के शमाल अब्दुल नासिर, यूगोस्लाविया के टीटो, घाना के वामे एनेक्रूमा, इंडोनेनिया के सुकर्णो थे।
- गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थता, पृथकतावाद या पलायन नहीं है।
- 1972 में गुटनिरपेक्ष देशों ने संयुक्तराष्ट्र के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन ;न्छब्ज्।क्द्ध में विकास हेतु एक नई व्यापार नीति का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिससे विकसित देशों तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा गरीब और अल्पविकसित देशों का शोषण न हो सके। वे अपने संसाधनों का स्वयं अपनी इच्छानुसार प्रयोग कर सकें।
- दों ध्रुवीयता को चुनौती: 1961 में युगोस्लाविया के बेलग्रेड में 25 सदस्य राष्ट्रों ने भारत के ज्वाहर लाल नेहरू, मिस्र के अब्दुल गमाल नासिर, युगोस्लाविया के टीटो इन्डोनेशिया के सुकर्णों, छाना के वामें एनक्रूम के नेतृत्व मे एक संगठन की स्थापना की गई।
- इन देशों का 15 वाॅ सममेलन 2009 में मिस्र में हुआ। उस समय इसकी सदस्य संख्या 118 तथा पर्यवेक्षकों की संख्या 15 थी।
- गुटनिरपेक्षता का अर्थ तटस्थत, पृथकतावाद अथवा पलायन नहीं है।