अध्याय-समीक्षा
- हड़प्पा संस्कृति सिन्धु घाटी की सभ्यता का दूसरा नाम है
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| हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओ में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई इंटें शामिल है | ये वस्तुएं अफगानिस्तान, जम्मू, बिलोचीस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात आदि क्षेत्रों से मिली है जो एक दुसरे से लम्बी दुरी पर स्थित है |
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इस सभ्यता का नामकरण हड़प्पा नामक पुरास्थल के नाम पर किया गया है
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| यह संस्कृति पहेली बार इस्सी स्थान पर खोजी गयी थी | इसका काल लगभग 2600 ई॰ पू॰ से 1900 ई॰ पू॰ माना जाता है | इस क्षेत्र में हड़प्पा सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियों का अस्तित्व था, जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा संस्कृतियाँ कहा जाता है | हड़प्पा सभ्यता की इन संस्कृतियों से अलग करने के लिए कभी- कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है |
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– हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केन्द्रों का विकास था | इसे हड़प्पा सभ्यता के सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल मोहनजोदड़ो के अध्धन से समझा जा सकता है | यह एक नियोजित शहर था | इसके दो भाग थे – दुर्ग तथा निचला शहर
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मोहनजोदड़ो के दुर्ग मिली महत्त्वपूर्ण संरचनाए जैसे – मालगोदाम तथा विशाल स्न्नागार |
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हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना उच्च कोटि की थी | हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना उच्च कोटि की थी नगर एक योजना के अनुसार बसाये जाते थे | नगरो की गलियाँ और सड़के काफी चौड़ी होती थी | सभी सड़के एक दुसरे को समकोण पर काटती थी | लोग पकी ईंटो से बने मकान में रहते थे |
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| मकानों में खिड़की दरवाजो की वयवस्था थी | कुछ मकान दो या तीन मंजिलो के भी थे | लोग विशाल भवन भी बनाते थे | मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है जो 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था |
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जल निकास के लिए नालियों की बड़ी अच्छी वयवस्था की हुई थी नालियां पकी बनी हुई थी | इन्हें ऐसी ईंटो से ढका जाता था जिन्हें सफाई करते समय आसानी से हटाया जा सकता था | घरो की नालियो का पानी गली नालियों में जा गिरता था और नगर के बाहर एक बहुत बड़ा नाला था जिसमे सरे नगर का गंदा पानी इकट्ठा हो जाता था
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- हड़प्पा संस्कृति के लोग कांस्य के निर्माण तथा प्रयोग से भली-भाँति परिचित थे | तांबे से टिन मिलाकर धातु शिल्पियों द्वारा काँसा बनाया जाता था | वे प्रतिमाओ और बर्तनों के अतिरिक्त कई प्रकार के औजार तथा हथियार बनाते थे ; जैसे – आरी, कुल्हाड़ी, छुरा तथा बर्छा |
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लोग ऊन अथवा सूत कातने के लिए तकलियों का प्रयोग करते थे | ऊनी तथा सूती दोनों प्रकार के कपडे बुने जाते थे हड़प्पा के लोग नावों का निर्माण भी करते थे | वे लोग मुद्रा – निर्माण (मिटटी की मोहरें बनाना ) और मूर्ति- निर्माण में काफी कुशल थे
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हड़प्पा के कारीगर सोने- चाँदी तथा रत्नों के आभूषण तथा मिटटी, ताबें, काँसे के बर्तन बनाने की कला में भी कुशल थे | उनके द्वारा बनाये गए मिटटी के बर्तन चिकने तथा चमकीले होते थे |
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चन्हुदड़ो की हड़प्पाकालीन बस्ती लगभग पूरी तरह शिल्प उत्पादन में संग्लन थी |
यहाँ के शिल्प कार्यो में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहरें बनाना बाट बनाना आदि शामिल थे |
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पुरुष देवता – खुदाई में एक सील मिली है जिस पर पुरुष देवता को चित्रित किया गया है | उसके सिर प
तीन सींग दिखाये गए है | उसे एक योगी की तरह ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाया गया है | उसके चारो ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गेंडा है है है हड़प्पा मे पत्थर पर बने लिंग तथा योनि के अनेकों प्रतीक मिले है| इससे ये अनुमान लगाया जाता है कि लिंग और योनि की पुजा हड़प्पा काल मे आरंभ हुई |
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वृक्षों और पशुओं की पूजा – खुदाई से मिलने वाली एक सील पर पीपल की दलियूं के बीच में एक देवता को दिखाया गया है | इससे पता चलता है की सिन्धु क्षेत्र के लोग वृक्ष की पूजा भी करते थे | एक अन्य सील पर अंकित कूबड़ वाला बैल भी इसी बाट को सिद्ध करता है
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आवासियों भवनों का विस्तार मोहनजोदड़ो के निचले शहर में था |
- हर घर का इंटों से बना अपना एक स्नानघर होता है |
- घर की नालियां घर के माध्यम से सड़क की नाल्लियों से जुडी हुई थी |
- कुछ घरो में दुसरे तल या छत पर जाने के लिए सीढियां बनायीं गयी थी | कई आवासों में कुएं थे |
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कुएं प्रायः एक ऐसे कक्ष में बने ए गए थे जिसमे बहार से आया जा सकता था | इसका प्रयोग संभवता राहगीरों द्वारा किया जाता था
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हड़प्पा संस्कृति के लोगो के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताओ का वर्णन इस प्रकार है –
1. भोजन – ये लोग गेहूँ, चावल, सब्जियां तथा दूध का प्रयोग करते है| मांस- मछली तथा अंडे भी उनके भोजन के अंग थे |
2. वेश–भूषा – हदपप संस्कृति के लोग ऊनी और सूती दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे | पुरुष प्रायः धोती और शाल धारण करते थे | स्त्रियाँ प्रायः रंगदार और बेलबूटों वाले वस्त्र पहनती थी स्त्रियाँ और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौक़ीन थे |
3. मनोरंजन के साधन – लोगो मनोरंजन के मुख्य साधन घरेलु खेल थे | वे प्रायः नृत्य, संगीत और चौपड़ आदि खेल कर अपना मन बहलाया करते थे | बच्चों के ख
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– हड़प्पा संस्कृति के विनाश के मुख्य कारण निम्नलिखित है –
1. बाढ़े – कुछ विद्वानों का कहना है की सिंधु नदी में आने वाली बाढ़ों के कारण यहाँ के नगर नष्ट हुए | समय के साथ – साथ वे रेत के नीचे दब गए |
2. भूकंप – ऐसा भी विश्वास किया जाता है की हड़प्पा संस्कृति में जोरदार भूकंप आये होंगें | उन्हीं भूकम्पों के कारण वहां के नगर नष्ट- भ्रष्ट हो गए |
3. अकाल तथा महामारियाँ – कुछ विद्वानों का मत है की उस प्रदेश में भयंकर अकाल पड़ा होगा या फिर भयंकर महामारी फैली होगी जो उसके विनाश का कारण बनी |
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4. आर्य जाति के आक्रमण – कई इतिहासकारों का मत है कि वहां के लोगो को आर्य जाति के लोगो युद्ध करने पड़े | इन युद्धों में हड़प्पा के लोग पराजित हुए और हड़प्पा संस्कृति का अंत हो गया
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हड़प्पा संस्कृति के पतन के साथ – साथ नगरवाद के लक्षण समाप्त होने लगे थे | इस बाट की जानकारी उत्तरकालीन हड़प्पा संस्कृति से संबंधित अवशेषों से मिलती है |
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| स्थान- स्थान पर आभूषणों की निधियां गड़ी मिलि है | एक स्थान पर मानव खोपड़ियों का ढेर पाया गया | मोहनजोदड़ो की उपरी सतह में नए प्रकार की कुल्हाड़ियाँ तथा छुरियाँ मिली है | यह वस्तुए किसी बाहरी आक्रमण का संकेत देती है |
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हड़प्पा संसकृति में कई प्रकार के शिल्प प्रचलित थे, जो संभवत: राज्य द्वारा व्यवस्थित होते थे| तांबे में तीन मिलाकर धातु शिल्पियों द्वारा कांसा बनाया जाता था|
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शिल्पी काँसे से प्रतिमाओं और बर्तनों के अतिरिक्त कई प्रकार के औजार तथा हथ्यार बनाते थे; जैसे- आरी, कुल्हाड़ी, छुरा तथा बर्छा|
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हड़प्पावासी उन स्थानों पर बस्तियाँ स्थापित करते थे, जहाँ कच्चा माल आसानी से उपलब्ध था| उदाहरण के लिए नागेश्वर और बालाकोट में शंख आसानी से उपलब्ध था| ऐसे ही कुछ अन्य पुरास्थल थे- सुदूर अफगानिस्तान में शोर्तुघई|
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अभियान योजना कचे माल प्राप्त करने की एक अन्य निति थी |उदहारण के लिए राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तांबे के लिए दक्षिण भारत में (सोने के लिए अभियान भेजे गए | इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदाये के साथ संपर्क स्थापित किया जाता था | यहाँ तांबे की वस्तुओ की विशाल संपदा मिली थी | संभवत इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को तांबा भेजते थे |
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– हड़प्पा के पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार सम्बन्धो की पुष्टि पुरातात्विक प्रमाणों से होती है –
(1) ओमान से तांबा लाया जाता है| हड़प्पा तथा ओमान के तांबे में निक्कल के अंश इस बाट की पुष्टि करते है |
(2) ओमान से एक स्थल से हड़प्पाई ज़ार पाया गया है जिस पर कलि मिटटी की एक परत चढाई गयी थी |
(3) हड़प्पा के बाट, मालाएं तथा मुहरें मेसोपोटामिया के स्थलों से प्राप्त हुई है |