अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
Q1. समानता का अर्थ क्या है ?
उत्तर : समानता का अर्थ यह है कि समाज में किसी व्यक्ति या वर्ग से जाति, रंग ,क्षेत्र ,धर्म, और आर्थिक स्तर पर भेदभाव की मनाही तथा सबको समान अवसर प्राप्त हो |
लास्की के अनुसार,
"सर्वप्रथम समानता का अर्थ है कि समाज में कोई विशेषाधिकार युक्त वर्ग न हो |
Q2. समानता कितने प्रकार की होती है सह - उदाहरण व्याख्या कीजिए |
उत्तर : समानता पाँच प्रकार की होती है जो निम्नलिखित है :-
समानता के प्रकार :
1. प्राकृतिक समानता
2. सामाजिक समानता
3. नागरिक वैधानिक समानता
4. राजनितिक समानता
5. आर्थिक समानता
1. प्राकृतिक समानता : प्राकृतिक समानता वह समानता है जो प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से प्राप्त है |
जैसे - सभी मनुष्य प्राकृतिक रूप से समान है अर्थात हम सभी प्राकृतिक रूप से मनुष्य हैं |
2. सामाजिक समानता: सामाजिक समानता का अर्थ है समाज में बिना किसी जाति, धर्म, वंश, लिंग और रंग के समाज में किसी व्यक्ति से समान व्यवहार एवं समाजिक अवसरों से है | समाज में यदि सभी के साथ सामान व्यवहार हो रहा है और उसे सभी सामाजिक अवसरों का लाभ मिल रहा है तो इसे सामाजिक समानता कहते हैं |
3. नागरिक वैधानिक समानता : सभी व्यक्ति को क़ानूनी रूप से सामान अधिकार प्राप्त हो अर्थात कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हो इस समानता के अंतर्गत कानून किसी भी व्यक्ति से जाति, धर्म, नस्ल, वंश और लिंग के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं करता है ऐसी समानता को नागरिक वैधानिक समानता कहते हैं |
4. राजनितिक समानता : जब सभी नागरिकों को राज्य द्वारा समान राजनितिक अधिकार प्राप्त हो तो इसे राजनितिक समानता कहते हैं | राजनितिक अधिकार से तात्पर्य है सभी को वोट देने का अधिकार, अपनी पसंद की सरकार चुनने का अधिकार, राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, चुनने या चुनाव लड़ने का अधिकार इत्यादि से है |
5. आर्थिक समानता :आर्थिक समानता का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी को समान रोजगार, समान वेतन, व्यवसाय और समान रूप से आर्थिक कार्य करने का अधिकार हो तो ऐसी समानता को आर्थिक समानता कहते हैं |
उदारवाद :
सकारात्मक कार्यवाही : सकारात्मक कार्यवाही का अर्थ है सरकार को समानता की स्थापना एवं वृद्धि के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने से है जिससे सभी प्रकार के समाज को समानता को बढ़ावा मिले | निम्न तथा वंचित समुदायों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाएँ |
कानून के समक्ष समानता :
कानून के समक्ष समानता का अर्थ है संविधान एवं कानून के लिए सभी नागरिक समान हैं | उसके लिए कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा, ऊँचा या निचा, शिक्षित या अशिक्षित, अमीर या गरीब नहीं है सभी उसकी दृष्टि में समान है और वो किसी से इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है और समान दृष्टि से सभी कि रक्षा करता है | संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने सभी समान है |
Q3. समानता जीवन की आवश्यक शर्त क्यों है ?
उत्तर : समाज में नागरिकों के लिए समानता विकास के लिए आवश्यक शर्त है क्योंकि समानता के बिना कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक उपभोग नहीं कर सकता है | नागरिक समानता के अंतर्गत कानून सर्वोच्च होता है और सभी व्यक्ति कानून के समक्ष बराबर होते है | जो व्यक्ति कानून की परवाह नहीं करता है और वह सोचता है कि कानून उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती है तथा किसी व्यक्ति को स्वतंत्रता पूर्वक कार्य नहीं करने देता है तो उस व्यक्ति के लिए कानून में दंड का प्रावदान किया गया है |
जब कानून समान रूप से सभी व्यक्तियों के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करता है तभी व्यक्ति निर्भीक होकर अपनी स्वतंत्रता की किसी भी प्रकार का प्रयोग वास्तविक रूप से कर सकता है |
समानता की अवधारणा इस विचार पर जोर देती है कि सम्पूर्ण मानव जाति समान मूल्य रखती है|जिसका सरोकार रंग, लिंग, जाति, और राष्ट्रीयता से नहीं होता है | इसलिए मानव विकास के लिए समान व्यवहार और सम्मान का हक़दार है |
Q4. प्राकृतिक असमानताओं और सामाजिक (समाजजनित) असमानताओं में अंतर स्पष्ट कीजिए| उत्तर : राजनीतिक सिद्धांत में प्राकृतिक असमानताओं और सामाजिक (समाजजनित) असमानताओं में अंतर किया जाता है:-
(i) प्राकृतिक असमानताएँ लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं, प्रतिभा और उनके अलग-अलग चयन के कारण पैदा होती हैं।
(ii) प्राकृतिक असमानताएँ लोगों की जन्मगत विशिष्टताओं और योग्यताओं का परिणाम मानी जाती हैं। तथा यह मान लिया जाता है कि प्राकृतिक विभिन्नताओं को बदला नहीं जा सकता।
(i) सामाजिक (समाजजनित) असमानताएँ वे होती हैं, जो समाज में अवसरों की असमानता होने या किसी समूह का दूसरे के द्वारा शोषण किए जाने से पैदा होती हैं।
(ii) दूसरी ओर वे सामाजिक असमानताएँ हैं, जिन्हें समाज ने पैदा किया है।
उदाहरण के लिए, कुछ समाज बौद्धिक काम करने वालों को शारीरिक कार्य करने वालों से अधिक महत्त्व देते हैं और उन्हें अलग तरीके से लाभ देते हैं। वे विभिन्न वंश, रंग या जाति के लोगों के साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार करते हैं।
Q5. आर्थिक समानता की व्याख्या कीजिए |
उत्तर : आर्थिक समानता :आर्थिक समानता का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को अपने मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी को समान रोजगार, समान वेतन, व्यवसाय और समान रूप से आर्थिक कार्य करने का अधिकार हो तो ऐसी समानता को आर्थिक समानता कहते हैं |
लास्की के अनुसार,
जिस देश में सम्पत्ति तथा उत्पत्ति के साधन कुछ गिने - चुने लोगों के हांथों में केन्द्रित होते है, उस देश की राजनीति, संस्कृति, शिक्षण संस्थानों तथा न्यायपालिका पर पूर्ण धन हावी हो जाता है|
रोबर्ट डहल के अनुसार ,
राजनितिक स्थायित्व और आर्थिक समानताओं को परस्पर सम्बन्धित माना जाता है | जिन देशों में भारी आर्थिक विषमतायें होती हैं, वहाँ क्रन्तिपूर्ण परिवर्तनों की अपेक्षाकृत अधिक संभावना है | राजनितिक स्थायित्व तथा सरकार का लोकतंत्रीय स्वरूप बनाये रखने के लिए आमीन भूमि के समुचित वितरण , कर - प्रणाली में सुधर तथा शिक्षण सुविधाओं का विस्तार करके आर्थिक क्षेत्र में समन्ता को लाना होगा |
आर्थिक समानता के मुख्य पक्ष निम्नलिखित है :-
(i) आर्थिक सहायता - बेकारी, बुढ़ापे, बीमारी व अंग - भंग की स्थिति में लोगों को राज्य की ओर से आर्थिक सहायता की जाती है |
(ii) वेतन व कार्य करने की स्थिति - स्त्रियों और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले तथा स्त्रियों व बच्चों को आर्थिक मजदूरी के करण ऐसी परिस्थितियों में कार्य ण अर्ना पड़े जो उनके स्वास्थ्य व जीवन के लिए हानिकारक हों या उनकी आयु के लिए उचित अवकाश मिले |
(iii) रोजगार व अवकाश - सभी को रोजगार पर्याप्त मजदूरी और विश्राम के लिए उचित अवकाश मिले |
(iv) भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति - प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए |
Q6. कानून के समक्ष समानता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : कानून के समक्ष समानता का अर्थ है संविधान एवं कानून के लिए सभी नागरिक समान हैं | उसके लिए कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा, ऊँचा या निचा, शिक्षित या अशिक्षित, अमीर या गरीब नहीं है सभी उसकी दृष्टि में समान है और वो किसी से इस आधार पर भेदभाव नहीं करता है और समान दृष्टि से सभी कि रक्षा करता है | संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने सभी समान है |
Q7. आर्थिक समानता के संबंध में मार्क्स के क्या विचार हैं ?
उत्तर : आर्थिक समानता के संबंध में मार्क्स के विचार :-
मार्क्स का विश्वास यह है कि व्यक्ति निर्मित असमानता का मूल कारण व्याक्तिगत सम्पत्ति का कुछ हाथों में केन्द्रित होना है | इससे न केवल आर्थिक असमानता का जन्म होता है बल्कि यह सभी क्षेत्रों जैसे - शिक्षा, सामाजिक स्तर, राजनितिक प्रभाव और राजनितिक प्राधिकार आदि में असमानता को बढाता है | यह समाज के विभिन्न वर्गो में रैंक और सुविधा में असमानता पैदा करता है |
मार्क्स ने राज्य को पूंजीवादी वर्ग का एजेंट माना और पूंजीवादी वर्ग को समाप्त करने का सुझाव किया है इसलिए असमानता को मिटने के लिए और समतावादी समाज की स्थापना के लिए समाज के ढाचे को बदलने की सलाह दी है | उसने वर्गरहित, राज्यरहित और राज्य सहित समज के निर्माण पर जोर दिया है | ऐसा समाजवादी राज्य होगा |
Q8. भारतीय संविधान में सामाजिक समानता का क्या रूप है ?
उत्तर : भारतीय संविधान में सामाजिक असमानता युगों से व्याप्त है | स्वतंत्रता के बाद से संविधान निर्माताओं ने समानता के मूल अधिकारों का उल्लेख करके सामाजिक समानता के महत्व को बढाया है | अनुच्छेद (14) में संविधान निर्माताओं ने कानून के समक्ष समानता प्रदान किया है और भेदभाव पर प्रतिबन्ध लगाया है | अनुच्छेद 17 के अंतर्गत छुआछूत को समाप्त कर दिया है | इस प्रकार संविधान में समानता के अधिकार को सुरक्षित किया गया है |
Q9.समानता के प्रति मार्क्सवादी विचार क्या है ?
उत्तर : मार्क्स उन्नीसवीं सदी का एक प्रमुख विचारक था। मार्क्स ने दलील दी कि खाईनुमा असमानताओं का बुनियादी कारण महत्त्वपूर्ण आर्थिक संसाधनों जैसे- जल, जंगल, जमीन या तेल समेत अन्य प्रकार की संपत्ति का निजी स्वामित्व है। निजी स्वामित्व मालिकों के वर्ग को सिर्फ अमीर नहीं बनाता बल्कि उन्हें राजनीतिक ताकत भी देता है। यह ताकत उन्हें राज्य की नीतियों और कानूनों को प्रभावित करने में सक्षम बनाती है और वे लोकतांत्रिक सरकार के लिए
खतरा साबित हो सकते हैं।
Q10. आर्थिक असमानता के प्रति मार्क्सवादी और समाजवादी विचार में क्या समानताएं है ?
उत्तर : मार्क्सवादी और समाजवादी महसूस करते हैं कि आर्थिक असमानताएँ सामाजिक विशेषाधिकार जैसी अन्य तरह की सामाजिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं। इसलिए समाज में असमानता से निबटने के लिए हमें समान अवसर उपलब्ध कराने से आगे जाना चाहिए और आवश्यक संसाधनों और अन्य तरह की संपत्ति पर जनता का नियंत्रण कायम करने और सुनिश्चित करने की ज़रूरत है। ऐसे विचार विवादास्पद हो सकते हैं लेकिन उन्होंने ऐसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे उठाए, जिनके समाधान करने की ज़रूरत है।
Q11. नारीवाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : नारीवाद स्त्री - पुरुष के समान अधिकारों का पक्ष लेने वाला राजनीतिक सिद्धांत है। वे स्त्री या पुरुष नारीवादी कहलाते हैं,जो मानते हैं कि स्त्री -पुरुष के बीच की अनेक असमानताएँ न तो नैसर्गिक हैं और न ही आवश्यक। नारीवादियों का मानना है कि इन असमानताओं को बदला जा सकता है और स्त्री -पुरुष एक समतापूर्ण जीवन जी सकते है |
Q12. पितृसत्ता से क्या आशय है ?
उत्तर : ‘पितृसत्ता’ से आशय एक ऐसी समाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था से है, जिसमें पुरुष को स्त्री से अधिक महत्त्व और शक्ति दी जाती है। पितृसत्ता इस मान्यता पर आधारित है कि पुरुष और स्त्री प्रकृति से भिन्न हैं और यही भिन्नता समाज में उनकी असमान स्थिति को न्यायोचित ठहराती है।