अभ्यास प्रश्नोत्तर :-
Q1.स्वंतंत्रता से क्या आशय है ? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई संबंध है |
उत्तर :
स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्ति की आत्म-अभिव्यक्ति की योगिता का विस्तार करना और उसके अंदर की संभावनाओं को विकसित करना है। इस अर्थ में स्वतंत्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सके ।
स्वतंत्रता के दो पहलु महत्वपूर्ण है जिनमे
(i)बाहरी प्रतिबंधों का अभाव है | (ii) लोगों के अपनी प्रतिभा का विकास करना है |
Q2. स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अंतर है?
उत्तर :
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में अंतर :-
स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा के पक्ष
नकारात्मक स्वतंत्रता को प्राचीन विचारक ज्यादा महत्व देते है क्योंकि उनका मानना था कि स्वतंत्रता से अभिप्राय है मनुष्यों पर किसी भी प्रकार से बंधनों का अभाव/मुक्ति से है या मनुष्य पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो | तथा उसकी कार्यों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध होना चाहिए | मनुष्य को अपने अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए |वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र जैसे राजनितिक, आर्थिक, सामाजिक,तथा धार्मिक रूप से स्वतंत्र होना चाहिए | व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार जो कुछ करना चाहता है उसे करने देना चाहिए | राज्य के द्वारा उस पर किसी भी प्रकार से प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए |
जाँन लाँक, एडम स्मिथ और जे.एस.मिल आदि विचारक स्वतंत्रता के नकारात्मक पक्षधर थे | जाँन लाँक को नकारात्मक स्वतंत्रता के प्रतिपादक माने जाते है इनके अनुसार -
- स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है |
- व्यक्ति पर राज्य द्वारा कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए |
- वह सरकार सर्वोत्तम है जो कम से कम शासन करे |
- सम्पति और जीवन की स्वतंत्रता असीमित होती है |
स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा के पक्ष
जाँन लास्की और मैकाइवर स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक है | उनका मानना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव है | मनुष्य समाज में रहता है और समाज का हित ही उसका हित है | समाज हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए अवसर की प्राप्ति ही स्वतंत्रता है |
सकारात्मक स्वतंत्रता की विशेशताएँ है -
- स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है | सामजिक हित लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाये जा सकते है |
- स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं है | कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतंत्रता की रक्षा करते है |
- स्वतंत्रता का अर्थ उन सामजिक परिस्थियों का विद्ध्यमान होना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों |
Q3. सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है ? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ?
उत्तर :
सामजिक प्रतिरोध शब्द का तात्पर्य है कि सामजिक बंधन और अभिव्यक्ति पर जातिय एवं व्यक्ति के व्यवहार पर नियंत्रण से है | ये बंधन प्रभुत्व और बाह्य नियत्रंण से आता है | ये बंधन विभिन्न विधियों से थोपे जा सकते है ये कानून, रीतिरिवाज, जाति, असमानता,समाज की रचना हो सकती है |
स्वतंत्रता के वास्तविक अनुभव के लिए सामाजिक और क़ानूनी बंधन आवश्यक है तथा प्रतिरोध और प्रतिबन्ध न्यायसंगत और उचित होना चाहिए | लोगों की स्वतंत्रता के लिए प्रतिरोध जरूरी है क्योंकि विना उचित प्रतिरोध या बंधन के समाज में आवश्यक व्यवस्था नहीं होगी जिससे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है |
Q4. नागरिकों की स्वंतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
नागरिकों की स्वंतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की भूमिका :-
राज्य के संबध में कई विचारकों का मानना है कि राज्य लोगों की स्वतंत्रता के बाधक है | इसलिए उनकी राय में राज्य के समान कोई संस्था नहीं होनी चाहिए |
व्यक्तिवादियों का मानना है कि राज्य एक आवश्यक बुराई है इसलिए वे एक पुलिस राज्य चाहते है जो मानव की स्वतंत्रता की रक्षा बाहरी आक्रमणों और भीतरी खतरों से कर सके | इसलिए आधुनिक स्थिति में स्वतंत्रता की अवधारणा और स्वतंत्रता के आवश्यक अवयव बदल गए है | आज इस तथ्य को स्वीकार किया जाता है कि प्रतिरोध और उचित बंधन आवश्यक हैं | यह स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है |
Q5. अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता का क्या अर्थ है ? आपकी राय में इस स्वंतत्रता पर समुचित प्रतिबन्ध क्या होंगे ? उदाहरण सहित बताइए |
उत्तर :
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है जो प्रजातंत्र को सफल बनाती है तथा इसका अर्थ है कि एक पुरुष या स्त्री को स्वयं को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए | जैसे - लिखने,कार्य करने, चित्रकारी करने ,बोलने या कलात्मक करने की पूर्ण स्वतंत्रता |
उदाहरण के लिए ,
भारतीय संविधान में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, परन्तु साथ ही कानून - व्यवस्था, नैतिकता, शान्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा को यदि नागरिक द्वारा हानि होने की आशंका की अवस्था में न्यायसंगत बंधन लगाने का प्रावधान है | इस प्रकार विध्यमान परिस्थियों में न्यायसंगत प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है | परन्तु इस परिबंध का विशेष उद्देश्य होता है और यह न्यायिक समीक्षा के योग्य हो सकता है |