अतिरिक्त प्रश्नोत्तर :-
Q1. भारतीय संविधान की आलोचनाएँ किन रूपों में की जाती हैं?
उत्तर : भारतीय संविधान की कई आलोचनाएँ हैं। इनमें से तीन मुख्य है :-
(क) यह संविधान अस्त-व्यस्त है।
(ख) इसमें सबकी नुमाइंदगी नहीं हो सकी है।
(ग) यह संविधान भारतीय परिस्थितियों के अनुवूफल नहीं है।
Q2. संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के नजरिये से हमारा क्या आशय है?
उत्तर : संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के नजरिये से हमारा आशय तीन बैटन से है:-
(1) पहली बात, संविधान कुछ अवधारणाओं के आधार पर बना है। इन अवधारणाओं की व्याख्या हमारे लिए ज़रूरी है। इसका मतलब यह कि हम संविधान में व्यवहार किए गए पदों, जैसे - ‘अधिकार’, ‘नागरिकता’, ‘अल्पसंख्यक’ अथवा ‘लोकतंत्र’ के संभावित अर्थ के बारे में सवाल करें।
(2) संविधान की बुनियादी अवधारणाओं की हमारी व्याख्या से मेल खाती है। संविधान का निर्माण जिन आदर्शों की बुनियाद पर हुआ है उन पर हमारी गहरी पकड़ होनी चाहिए।
(3) भारतीय संविधान को संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़कर पढ़ा जाना चाहिए ताकि सैद्धांतिक रूप सेहम बता सके कि ये आदर्श कहाँ तक और क्यों ठीक हैं तथा आगे उनमें कौन-से सुधार किए जा सकते हैं। किसी मूल्य को अगर हम संविधान की बुनियाद बनाते हैं, तो हमारे लिए यह बताना ज़रूरी हो जाता है कि यह मूल्य सही और सुसंगत क्यों है। इसके बगैर संविधान के निर्माण में किसी मूल्य को आधार बनाना एकदम अधूरा कहा जाएगा। संविधान के निर्माताओं ने जब भारतीय समाज और राज-व्यवस्था को अन्य मूल्यों के बदले किसी खास मूल्य-समूह से दिशा-निर्देशित करने का फैसला किया, तो ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि उनके पास इस मूल्य-समूह को जायज ठहराने के लिए कुछ तर्क मौजूद थे |
Q3. जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 में क्या कहा गया है वर्णन कीजिए |
उत्तर : जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 में कहा गया है -
1. न्याय और सुसंगत व्यवस्था पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय शांति की ईमानदारी से कामना करते हुए जापान के लोग राष्ट्र के संप्रभु अधिकार के रूप में प्रतिष्ठित युद्ध और अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के लिए धमकी अथवा बल प्रयोग से सदा-सर्वदा के लिए दूर रहेंगे।
2. उपर्युक्त अनुच्छेद के लक्ष्यों को पूरा करने की बात ध्यान में रखते हुए थल-सेना, नौ-सेना और वायु सेना तथा युद्ध के अन्य साजो-सामान कभी भी नही रखे जाएगे।
Q4. जापान के संविधान का को क्या कहा जाता है तथा यहाँ का संविधान किस दर्शन पर आधारित है?
उत्तर : सन् 1947 के जापानी संविधान के बोलचाल में ‘शांति संविधान’ कहा जाता है। इसकी प्रस्तावना में कहा गया है - ‘‘हम, जापान के लोग हमेशा के लिए शांति की कामना करते हैं और हम लोग मानवीय रिश्तों का नियंत्रण करने वाले उच्च आदर्शों के प्रति सचेत हैं’’। जापान के संविधान का दर्शन शांति पर आधारित है|
Q5.संविधान के दर्शन का क्या आशय है?
उत्तर : संविधान के दर्शन से आशय है संविधान के प्रति केवल कानूनी नजरिया अपनाया जा सकता है न कि नैतिक या राजनीतिक दर्शन का नजरिया। हर कानून में नैतिक तत्व नहीं होता किंतु बहुत-से कानून ऐसे हैं जिनका हमारे मूल्यों और आदर्शों से गहरा संबंध है।
उदाहरण के लिए कोई कानून भाषा अथवा धर्म के आधार पर व्यक्तियों के बीच भेदभाव की मनाही कर सकता है। इस तरह का कानून समानता के विचार से जुड़ा है। यह कानून इसलिए बना है क्योंकि हम लोग समानता को मूल्यवान मानते हैं।
Q6.भारत के संविधान में धर्म और राज्य को एकदम अलग रखने के मुख्यधारा के नजरिए का उद्देश्य क्या है?
उत्तर : इसका उद्देश्य है व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा। जो राज्य संगठित धर्म को समर्थन देता है वह पहले से ही मजबूत धर्म को और ताकतवर बनाता है। जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन का नियंत्रण करने लगते हैं, जब वे यह तक बताने लगें कि किसी व्यक्ति को ईश्वर से किस तरह जुड़ाव रखना चाहिए, कैसे पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए, तो व्यक्ति के पास इस स्थिति में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए।
Q7. व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता से अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता से है | राज्य को चाहिए कि वह न तो धर्म की मदद करे और न ही उसे बाधा पहुँचाए। और राज्य के लिए धर्म से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखना ज़रूरी है तथा राज्य को चाहिए कि नागरिकों को अधिकार प्रदान करते हुए वह धर्म को आधार न बनाए।
उदहारण के लिए ,पश्चिमी दुनिया में ईसाई धर्म कई शाखाओं में बँट गया और प्रत्येक शाखा का अपना चर्च था।
Q8. भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर : भारत में धर्म और राज्य के अलगाव का अर्थ है धर्म से अनुमोदित रिवाज मसलन छुआछूत व्यक्ति को उसकी बुनियादी गरिमा और आत्म-सम्मान से वंचित करते हैं। इन रिवाजों की पैठ इतनी गहरी और व्यापक होती थी कि राज्य के सक्रिय हस्तक्षेप के बिना इसके खात्मे की उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी। राज्य को धर्म के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करना ही पड़ा। ऐसे हस्तक्षेप हमेशा नकारात्मक नहीं होते है । राज्य ऐसे में धार्मिक समुदायों की मदद भी कर सकता है।
उदाहरण के लिए , धार्मिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा-संस्थान को वह धन दे सकता है |
Q9. भारतीय संविधान के उपलब्धियों का वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान के उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार से की जा सकती है:-
(i) हमारे संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद को एक शक्ल देकर उसे मजबूत किया है। यह एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह सब एक ऐसे समाज में किया गया जहाँ सामुदायिक जीवन-मूल्य व्यक्ति की स्वायत्तता को कोई महत्व नहीं देते अथवा शत्रुता का भाव रखते हैं।
(ii) हमारे संविधान ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आँच लाए बगैर सामाजिक न्याय के सिद्धांत को स्वीकार किया है। जाति आधारित ‘सकारात्मक कार्य-योजना (affirmative action programme) के प्रति संवैधानिक वचन बद्धता से प्रकट होता है कि भारत दूसरे राष्ट्रों की तुलना में कहीं आगे है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य-योजना सन् 1964 के नागरिक अधिकार आंदोलन के बाद आरंभ हुई जबकि भारतीय संविधान ने इसे लगभग दो दशक पहले ही अपना लिया था।
(iii) विभिन्न समुदायों के आपसी तनाव और झगड़े की पृष्ठभूमि के बावजूद भारतीय संविधान ने समूहगत अधिकार (जैसे - सांस्कृतिक विशिष्टता की अभिव्यक्ति का अधिकार) प्रदान किए हैं। हमारे संविधान निर्माता उस चुनौती से निपटने के लिए बहुत पहले से तैयार थे जो चार दशक बाद बहु-संस्कृतिवाद के नाम से जानी गई।
Q10.धर्म और राज्य को अलग रखने के मुख्यधारा के उद्देश्य क्या है? वर्णन कीजिए |
उत्तर : इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा।
जो राज्य संगठित धर्म को समर्थन देता है वह पहले से ही मजबूत धर्म को और ताकतवर बनाता है। जब धार्मिक संगठन व्यक्ति के धार्मिक जीवन का नियंत्रण करने लगते हैं, तब किसी व्यक्ति को ईश्वर से किस तरह जुड़ाव रखना चाहिए, कैसे पूजा-प्रार्थना करनी चाहिए, तो व्यक्ति के पास इस स्थिति में अपनी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए राज्य से अपेक्षा रखने का विकल्प होना चाहिए। इसलिए, व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए ज़रूरी है कि राज्य धार्मिक संगठनों की सहायता न करे।
Q11. भारतीय संविधान के सीमाएं क्या है उसका वर्णन कीजिए |
उत्तर : भारतीय संविधान के कुछ सीमाएं निम्नलिखित है:-
- पहली बात यह कि भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता की धारणा बहुत केन्द्रीयकृत है।
- दूसरे, इसमें लिंगगत - न्याय के कुछ महत्त्वपूर्ण मसलों खासकर परिवार से जुड़े मुद्दों पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया है।
- तीसरे, यह बात स्पष्ट नहीं है कि एक गरीब और विकासशील देश में कुछ बुनियादी सामाजिक - आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों का अभिन्न हिस्सा बनाने के बजाय उसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्व वाले खंड में क्यों डाल दिया गया |
Q12. भारतीय उदारवाद की दो धाराएं कौन सी है ?
उत्तर : भारतीय उदारवाद की दो धाराएँ हैं :-
- पहली धारा की शुरुआत राममोहन राय से होती है। उन्होंने व्यक्ति के अधिकारों पर जोर दिया, खासकर महिलाओं के अधिकार पर।
- दूसरी धारा में स्वामी विवेकान्द, के सी सेन और जस्टिस रानाडे जैसे चिंतक शामिल हैं|इन चिंतकों ने पुरातनी हिन्दू धर्म के दायरे में सामाजिक न्याय का जज्बा जगाया। विवेकान्द के लिए हिन्दू समाज की ऐसी पुर्रचना कर पाना उदारवादी सिद्धांतों के बगैर संभव नही होता।