अतिरिक्त :2 (वन एवं वन्य जीव संसाधन)
1. जैव विविधता :- पृथ्वी पर विभिनन प्रकार के जीव - जंतु , पेड़ - पौधे पाए जाते है जैव विविधता कहते है | इन जीवों के आकार तथा कार्यों में अलग - अलग पाई जाती है |
2. जैव विविधता मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है :- जैव विविधता मानव जीवन के लिए उत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि मानव और अन्य जीवधारी मिलकर ही इस जटिल पारिस्थितिक क्षेत्र का निर्माण करते है | जो अपने असित्व के एक - दुसरे पर निर्भर करते है | उदारहण के लिए हमें सांस लेने के लिए वायु , पौने का पानी और अनाज उगाने के लिए मृदा की आवश्कता होती है और पौधे पशु और सूक्ष्मजीवों इसका पुन: सृजन करते है |
3. पारिस्थितिक तंत्र :- वे तंत्र जिसमें सभी जीव - जन्तु एक दुसरे को फ़ायदा पहुँचते है और आपस में मिल - जुलकर रहते है तथा पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते है |
4. वनों की पारिस्थितिक तंत्र में भूमिका :- वन पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है क्योंकि में प्राथमिक उत्पादक है जिन पर दुसरे सभी जीव निर्भर करते है | जैसे वनों तथा खेती में उत्पादों को जीव - जन्तु एवं मनुष्य सभी खाते है यदि वन ही नहीं होगा तो पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बिगड़ जाएगा |
5. मानव क्रियाएँ प्राकृतिक वनस्पतिजात और प्राणिजात के ह्रास के कारण है :-
(a) कृषि के विस्तार के लिए वनों की कटाई इसका मुख्य कारक हैं |
(b) बड़े स्तर पर स्थापित बहुउद्देशीय परियोजनाएँ है |
(c) स्थानांतरित अथवा झूम खेती |
(d) खनन कार्य ने वनों की बर्बादी में महत्चपूर्ण भूमिका निभाई है |
(e) वन्य प्राणियों का अवैध व्यापार व शिकार इसका महत्चपूर्ण मुख्य कारक हैं
(f) पर्यावरणीय प्रदुषण व वाष्पिकारण और दावानल जैव विविधता में ह्रास के कारक है |
(g) संसाधनों का असमान वितरण व उपभोग भी इससें ह्रास का कारक है |
6. I.U.C.N का पूरा नाम :- अंतर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ |
7. I.U.C.N के द्वारा विभिनन श्रेणियों में बाँट गया है :-
(a) सामान्य जातियाँ :- सामान्य जातियाँ वे जातियाँ होती है जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान होती है जैसे पशु , साल , चील और कृन्तक आदि |
(b) संकटग्रस्त जातियाँ :- संकटग्रस्त जातियाँ वे जातियाँ है जिनकी संख्या बहुत कम है जिनके लुप्त होने का खतरा है जिन कारणों से इनकी संख्या कम हुई है यदि वह जारी रही हो ये कभी भी समाप्त हो सकते है जैसे काला हिरण , मगरमच्छ , भारतीय जंगली गधा , गैंडा आदि |
(c) सुभेय जातियाँ :- सुभेय जातियाँ वे जातियाँ है जिनकी संख्या कम होती जा रही है यदि हमने शिकार एवं वनोंन्मुलन को कम नहीं किया तो यह संकटग्रस्त जीवों में शामिल हो सकती है | जैसे नीली भेड़ , एशियाई हाथी , गंगा नदी की डॉलिफान आदि |
(d) दुर्लभ जातियाँ :- वे जातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम है ये आसानी से नहीं पाए जाते ये सुभेय जातियाँ भी होती है |
(e) स्थानिक जातियाँ :- प्राकृतिक जातियाँ या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ या वे जातियाँ जो एक विशेष स्थान पर ही पाई जाती है | उदहारण निकोबारी कबूतर , अंडमानी जंगली सूअर , अंडमानी रील आदि |
(f) लुप्त जातियाँ :- ये वे जातियाँ है जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर पाई नही जाती है | या वे जातियाँ जो पृथ्वी से लुप्त हो गई जाती है वे लुप्त जातियाँ होती है | जैसे एशियाई चीता और गुलाबी सिरावाली बत्तख़ |
8. औपनिवेशिक काल में वन के नुकसान के कारण :-
(a) रेल - लाइनों क विस्तार |
(b) कृषि |
(c) व्यवसाय एवं उघोगों का विस्तार |
(d) वाणिज्य वानिकी |
(e) खनन क्रियाओं में वृद्धि |
9. वनों के ह्रास में वाणिज्य वानिकी (वन नीति) की भूमिका :- वाणिज्य वानिकी के कारण वनों की संख्या में ह्रास हुआ क्योंकि कुछ वृक्ष जातियों को बड़े पैमाने पर्लागाने के कारण पेड़ों की दूसरी जातियाँ ख़त्म हो है है जैसे सागवन के पर्दों को लगाने ले लारण दक्षिण भारत के अन्य्प्रकृयिक वन बर्बाद हो गए है |
10. वनों के ह्रास में विकास परियोजनओं की भूमिका :- बड़ी विकास परियोजनाओं ने भी वनों को बहुत नुकसान पहुचांया है | कुछ ऐसे परियोजना होते है जिसके लिए वनों को काटना आवश्यक होता है जैसे नदी घाटी परियोजना के कारण कई वर्ग कि.मी तक वनों को काट दिया गया | नर्मदा सागर परियोजना के कारण के कई हजार हेक्टेयर वन जलमगन हो गए |
11. हिमालयन यव :- हिमालयन यव एक प्रकार का औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में पाया जाता है |
12. हिमालयन यव का प्रयोग :- इस पौधे के पेड़ की छाल , पत्तियों , टहनियों और जड़ों से टकसोल नामक रसायन निकालता है जिसका उपयोग कुछ कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है |
13. भारत में जैव - विविधता को कम करने वाले कारक :-
(a) जीव के आवास का विनाश |
(b) जंगली जानवरों को मारना |
(c) पर्यावरणीय प्रदुषण |
(d) दावानल |
14. पर्यावरण विनाश के अन्य कारक :-
(a) संसाधनों का असमान बंटवारा |
(b) संसाधनों का असमान प्रयोग |
(c) पर्यावरण के रख - रखाव की जिम्मेदारी में असमानता |
(d) अत्यधिक जनसंख्या |
15. जैव विनाश के प्रभाव :-
(a) के मूल जातियाँ और वनों पर आधारित समुदाय निर्धन होते जा रहे है और आर्थिक रूप से हाथिये पर पहुच गए है | ये समुदाय अपने दैनिक आवश्कताओं के लिए वनों पर निर्भर है |
16. वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण की आवश्कता :-
वनों और वन्य संरक्षण करना आवश्कता है क्योकों संरक्षण से पारिस्थितिक विविधता बनी रहती है तथा हमारे जीवन साध्य संसाधन - जल - वायु और मृदा बने रहते है यह विभिन्न जातियों में बेहतर जनन के लिए वनस्पति और पशुओं में से विविधता को भी संरक्षित करती है | उदारहण के तौर पर हम कृषि में अभी पांरपरिक फसलों पर निर्भर है | जलीय जैव विविधता मोटे तौर पर मछली पालन बनाए पर निर्भर है |
17. भारतीय वन्य जीवन रक्षण अधिनियम (1972) :- जिसमे वन्य - जीवों के आवास रक्षण के अनेक प्रावधान थे | सरे भारत में रक्षित जातियों की सूचि भी प्रकाशित की गई | इस कार्यकम के तहत बची हुई संगटाग्रस्त जातियों के बचाव पर , शिकार प्रतिबंधन , वन्य जीवों आवासों का कानूनी रक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार पर रोक लगाने पर जोर दिया गया |
18. भारतीय वन्य जीवन अधिनियम (1972) :-
(a) संगटाग्रस्त जातियों के बचाव के लिए उपाय |
(b) शिकार प्रतिबंधन ले लिए कानून बनाए गए |
(c) वन्य आवासों का कानूनी रंक्षण तथा जंगली जीवों के व्यापार के रोग पर रोक |
19. राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार वन संरक्षण के उपाय :-
(a) पारिस्थितिक संतुलन के द्वारा पर्यावरण सिथारता रखना |
(b) प्रत्यास्थापन मुलं के द्वारा मृदा अपरदन पर रोक |
(c) प्रकृतिक क्षेत्रों तथा समुद्री तटी पट्टियों में बालू टिब्बों के विस्तार पर रख |
(d) राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बनों की उत्पादकता बढ़ाना |
(e) जनजातियों एवं ग्रामीण लोगों के लिए जलाशय लकड़ी , चाय उत्पाद तथा लकड़ियाँ उपलब्ध करना |
20. वनों संरक्षण के लिए उपाय :-
(a) वन उत्पादों का कुशल प्रयोग |
(b) वृहत जन आंदोलानों के साथ मनाना |
(c) जिन क्षेत्रों में खेती नहीं की जा सकती है वहाँ पेड़ लगाना |
(d) सभी राष्ट्रीय उत्सवों के कार्यक्रयों को वृक्षारोपण के कार्यक्रयों के बढ़ाना देना |
21. वृक्षारोपण पारिस्थितिकी सतुलन बानर रखने में सहायक है :-
वनों के लाभ :-
(a) ये मृदा अपरदन को नियंत्रित करते है |
(b) नदी प्रवाह को प्रदान करते है |
(c) कच्चा माल प्रदान करते है |
(d) अन स्थानीय जलावायुको सैम बनाते है |
(e) के समुदायों को आजीविका प्रदान करते है |
(f) वनों की पत्तियों आदि से ह्र्मस बनते है जो मृदा को उपजाऊ बनाते है |
(g) पवन प्रवाह को नियंत्रित करते है |
(h) वन पर्यावरण संतुलन को बनाये रखने में सहायक है |
22. वन और वन्य जीव संसाधनों के वितरण की आवश्यकता है :- क्योंकि सभी वन और वन जीवों को प्रबन्धन , नियंत्रण कठिन है इन्हें आसानी समझाने के लिए इन्हें जामने के लिए हमें वन और वन्य जीव का वितरण करना आवश्क|
23. वनों के प्रकार :-
(a) प्राकृतिक वातावरण के आधार पर :-
(क) प्राकृतिक वातावरण के आधार परवन पाँच प्रकार के होते है :-
(a) उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन
(b) उष्ण कटिबंधीय पर्वपातिवन
(c) कहिली झाड़िया
(d) उष्ण कटिबंधीय शिष्तोषणण वन |
(e) टुंड्रा वनस्पति भी अल्पाइन |
(ख) प्रशासनिक आधार पर :-
(a) आरक्षित वन :- आरक्षित वन वे वन होते है जो सरकार द्वारा आरक्षित किए गए है इन वनों होते है इन वनों में किसी का भी जाना वर्जित है , आरक्षित वनों का प्राणियों के संरक्ष्ण के लिए सार्वधिक मूल्यवान माना जाता है | कुल वन का 54.4 % भाग आरक्षित वनों के अंतर्गत आता है |
(b) रक्षित वन :- वन विभाग के अनुसार देश के कुल वन क्षेत्र का एक - तिहाई हिस्सा रक्षित है | रक्षित वन वे वन होते है जिनमे पशु तथा खेती की जा सकती है सभी प्रतिबंधनों के साथ कुल वन क्षेत्र का 29.9 % आता है |
(c) अवर्गीकरण वन:- अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार , व्यकित्यों और समुदायों के स्वामित्व में है , अवर्गीकरण वन कहें जाते है | वन सरकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं हॉट है कुल वन का 16.4% से अधिक है |
24. भारत के उत्तरी - पूर्वी राज्यों में 40% से आधिक वन आवरण पाए जाते है क्योंकि :-
(a) इन राज्यों में वर्षा खूब होती है जो वनों के फैलाने में खूब सहायक होती है |
(b) इन राज्यों की भूमि पहाड़ी है और ऊँची - नीची है जिनके कारण वनों का शोषण आसानी से नहीं हो सकता और वह सुरक्षित रहते है |
25. वनों और वन्य जीवन के संरक्षण की आवश्कता :-
(a) इनके संरक्षण से पारिस्थितिकी विविधता बनी रहती है |
(b) जीवन साध्य संसाधन , जल , वायु और मृदा बने रहते है |
(c) यह जीन विविधता को भी संरक्षित रखती है |
26. भारत की जैव विविधता को कम करने वाले कारक :-
(a) वन्य जीवों को मारना और शिकार करना |
(b) वन्य जीवों के आवास का विनाश |
(c) पर्यावरणीय प्रदुषण |
(d) प्रदूषित जल |
(e) जंगलों में आग लगना |
27. वनों के विनाश से पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव या वनोमुलन पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित :-
(a) वनों के विनाश से मृदा अपरदन की प्रक्रिया तेज हो जाती है
(b) वनों के विनाश से वनों में रहने वाले विभिन्न जीव जन्तु या वन्य प्राणी भी विलुप्त होने लगते है और जंगली पौधे समाप्त हो जागे |
28. जैव आरक्षित क्षेत्रों :- जैव आरक्षित क्षेत्र बहुउद्देशीय सुरक्षित क्षेत्र होता है | जहाँ वैक्षानिकों स्थानीय लोगों एवं सरकारी आधिकारी मिलकर कार्य करते है ताकि वन्य प्राणियों और प्राकृतिक समपंदा की अच्छे से रक्षा की जा सके |
29. राष्ट्रीय उघान :- राष्ट्रीय उघान ऐसे रक्षित क्षेत्रों को कहते है जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति और प्राकृतिक सुन्दरता एक साथ सुरक्षित रखा जा सके |